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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण कृष्ण, ३ गोपीविहारी कृष्ण, ४ राजनीति वेत्ता, कूटनीति-विशारद श्रीकृष्ण, ५ योगेश्वर श्रीकृष्ण, ६ परब्रह्मस्वरूप श्रीकृष्ण ।
भागवत के द्वितीय स्कंध के सप्तम अध्याय में कृष्ण और बलराम के अवतारों की ओर संकेत किया गया है। तृतीय अध्याय में अन्य लीलाओं का वर्णन है। दशमस्कंध के पूर्वार्द्ध में श्रीकृष्ण का बालचरित्र तथा गोपी-विहार है। दशम स्कंध में लीलाओं का विशद चित्रण है। एक शब्द में कहा जाय तो श्रीमद्भागवत में महाभारत, गीता आदि का समन्वय हुआ है। उसमें एक ओर महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्ध में पाण्डवों के सखा वीर कृष्ण का रूप तथा दूसरी ओर गीता के साधुओं के परित्राता तथ पापियों के विनाशक एवं धर्म की स्थापना कर निष्काम कर्मयोग का उपदेश देने वाले श्रीकृष्ण का रूप निहारने को मिलता है।
वायपुराण के द्वितीय खण्ड के चौतीसवें अध्याय में स्यमंतक मणि की कथा के वर्णन में कृष्ण का विवरण आया है। वायपुराण के द्वितीय खण्ड के बयालीसवें अध्याय में श्रीकृष्ण को अक्षर ब्रह्म से परे और राधा के साथ गोलोक-लीला विलासी बताया है।४ । यही उपनिषदों का अरूप, अनिर्देश्य और अनिर्वाच्य ब्रह्म है। यही किसी नाम द्वारा अभिहित न किया जाने वाला परम तत्त्व है जिसे सात्वत वैष्णव श्रीकृष्ण कहते हैं।
अग्निपुराण के बारहवें अध्याय में कृष्णावतार की कथा है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्रीकृष्ण के चरित का पूर्ण विवेचन है। उसके तेरहवें अध्याय में 'कृष्ण' शब्द की अनेक दृष्टियों से व्याख्या की है। कृष्ण शब्द का 'क' अक्षर ब्रह्मवाचक, 'ऋ' अनन्तवाचक 'ष' शिववाचक, न धर्म वाचक, अ विष्णु वाचक, और विसर्ग नरनारायण अर्थ का वाचक है।६५ सर्वाधार, सर्वबीज, और सर्वमूर्ति स्वरूप होने के कारण वे कृष्ण कहलाते हैं। ___मार्कण्डेय पुराण की जो विषयसूची नारदीय पुराण में दी गई है उसके अनुसार मार्कण्डेय पुराण में यदुवंश, श्रीकृष्ण की लीलाए,
६४. वायुपुराण द्वितीय खण्ड अ० ४२ श्लो० ४२ से ५७ । ६५. ब्रह्मवैवर्तपुराण १३।५५-६८ ।
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