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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
___ कृष्ण नर रूप में अवतरित होकर भी नारायण रूप की सभी विशिष्टताओं से युक्त हैं। "नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्" कह कर महाभारतकार ने उनका अभिनन्दन किया है। उनके दिव्य भव्य मानवीय स्वरूप के दर्शन हमें महाभारत में होते हैं।
महाभारत के कृष्ण का व्यक्तित्व आकर्षक है। इन्द्रनील मणि के समान उनका श्यामवर्ण शोभायुक्त था। कमल सदृश उनके नेत्र थे, सूडौल, मन मोहक उनकी बाह्य छवि थी। अपने अप्रतिम रूप के साथ ही वे अतुल बलसम्पन्न भी थे। उनका उत्तम चरित्र सभी प्रकार के श्रेष्ठ गूणों और आदर्शों की खान है। वे महान् वीर, मित्रजनों के प्रशंसक, जाति और बन्धु बांधवों के प्रेमी, क्षमाशील, अहंकार रहित, ब्राह्मण भक्त, भयातुरों का भय दूर करने वाले, मित्रों का आनन्द बढ़ाने वाले, समस्त प्राणियों को शरण देने वाले, दीन-दुःखियों को पालने में तत्पर. शास्त्रज्ञानसम्पन्न, धनवान, सर्वभूतवन्दित, शरणागत को वर देने वाले, शत्र को अभय देने वाले, धर्मज्ञ, नीतिज्ञ, वेदों के वक्ता, तथा जितेन्द्रिय कहे गये हैं। वे धैर्यशाली, पराक्रमी, बुद्धिमान और तेजस्वी हैं ।५८ इस प्रकार ककृष्ण लोक के रक्षक, धर्म व नीति के संस्थापक और आदर्श पुरुषोत्तम हैं।
शतपथ ब्राह्मण में नारायण का उल्लेख है । ऋग्वेद में पांञ्चरात्र-सत्र का प्रयोजक पुरुष तथा पुरुष-सूक्त का कर्ता भी नारायण
५७. वीरो मित्रजन श्लाघी, ज्ञाति-बन्धुजनप्रियः ।
क्षमावांश्चानवादी, ब्रह्मज्ञो ब्रह्मनायकः ।। भयहर्ता भयार्तानां, मित्राणां नन्दिवर्धनः शरण्यं सर्वभूतानां दीनानां पालने रतः श्रुतवानर्थसम्पन्नः सर्वभूत नमस्कृतः । समाश्रितानां वरदः शत्रूणामपि धर्मवित् नीतिज्ञो नीतिसम्पन्नो, ब्रह्मवादी जितेन्द्रियः ।
- महाभारत अनुशासन पर्व १४७।१६-२० ५८. तस्मिन् धृतिश्च, वीर्यं च प्रज्ञा चौजश्च माधवे ।
--उद्योग पर्व ६५६ ५६. शतपथ ब्राह्मण १३-३-४ ।
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