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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
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नगर में अपने मित्र उपकंस के पास चला गया। कंस-उपकंस ने उसे आदर के साथ अपने यहाँ रखा। उपसागर ने किसी दिन देवगंभा को देख लिया, और दोनों में प्रेम हो गया। नंदगोपा की सहायता से वे दोनों एकान्त में मिलने लगे । देवगम्भा गर्भवती हो गई । रहस्योद्घाटन हो जाने पर कंस उपकंस ने अपनी बहिन उपसागर को इस शर्त पर विवाह दी कि यदि उससे कोई लड़का होगा तो वे उसे मार देंगे । देवगम्भा ने लड़की को जन्म दिया। उसका नाम अंजन देवी रखा गया । कंस ने गोवड्ढमान नामक ग्राम उपसागर को दे दिया । वह अपनी पत्नी और सेविका नन्दगोपा तथा सेवक अंधकवेण सहित वहाँ रहने लगा। ___संयोगवशात् देवगम्भा और नन्दगोपा दोनों साथ-साथ गर्भवती हुई । देवगम्भा के पुत्र हुआ नन्दगोपा के पुत्री। भाइयों द्वारा पुत्र को मार देने के भय से देवगम्भा ने उसे नन्दगोपा को दे दिया। और उसकी पुत्री स्वयं ले ली। इसप्रकार देवगम्भा के क्रमशः दस पुत्र हए और नन्दगोपा के दस पुत्रियाँ । देवगम्भा के सभी पुत्र नन्दगोपा के पुत्र प्रसिद्ध हुए और वे 'अंधकवेणु दास-पुत्र' के नाम से पहचाने गए । उनके नाम इस प्रकार हैं-१ वासुदेव २ बलदेव, ३ चन्द्र देव, ४ सूर्यदेव, ५ अग्निदेव ६ वरुणदेव, ७ अर्जुन, ८ प्रद्युम्न ६ घटपंडित और १० अंकुर।
वे दसों पुत्र बड़े होने पर लूट-मार करने लगे। लोगों ने राजा कंस से निवेदन किया कि 'अन्धक वेणु दास-पुत्र' बड़ा उपद्रव कर रहे हैं । राजा ने अंधकवेणु को बुलवाया, तो उसने भय के कारण सब भेद खोल दिया। कहा-वे मेरे पुत्र नहीं है, देवगम्भा-उपसागर के पत्र हैं। कंस भयभीत हआ उसने अमात्यों से विचार विमर्श किया । उन्होंने कहा-वे दसों भाई बड़े पहलवान हैं। उन्हें मल्लशाला में बलवाकर राजकीय मल्लों द्वारा मरवा दीजिए। राजा कंस ने उन दसों भाइयों को बुलवाया और उनसे अपने मल्ल चाणूर और मुष्टिक से मल्लयुद्ध करने को कहा। उन दसों भाइयों ने नगर में आकर धोबी, गन्धी और माली की दुकानें लूट ली, उस सामग्री से अपने अपने शरीर को सजाया, फिर आनन्द से झूमते हुए मल्लशाला में जा पहुँचे । बलदेव ने बात ही बात में चाणूर और मुष्टिक को
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