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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण बौद्ध साहित्य में श्रीकृष्ण : ___ बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में जातक कथाओं का विशिष्ट स्थान है । इनमें तथागत बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाए लिखी गई हैं। इनकी परिगणना 'खुद्दक-निकाय' के अन्तर्गत होती है और उसका रचना काल कतिपय विद्वान् विक्रम पूर्व की द्वितीय शताब्दी मानते हैं ।३९ जातकों में बुद्धकालीन भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित विपुल सामग्री है। जातककथाओं में 'घट जातक' का सम्बन्ध कृष्णचरित से है। वैदिकग्रन्थों में वर्णित कृष्ण चरित से यह सर्वथा भिन्न है, तथापि बौद्ध साहित्य में कृष्ण चरित के क्या सूत्र मिलते हैं और बौद्धों का श्रीकृष्ण के प्रति क्या दृष्टिकोण रहा है, इसे जानने के लिए 'घट जातक' की संक्षिप्त कथा यहां दी जा रही है ।४०
प्राचीन युग में उत्तरापथ के कंसभोग राज्यान्तर्गत असितंजन नगर में मकाकस नामक एक राजा राज्य करता था। उसके कंस
और उपकंस नामक दो पत्र थे, और देवगम्भा नामक पत्री थी। पुत्री के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि इसके पत्र से कंस के वंश का विनाश होगा। राजा मकाकस स्नेहाधिक्य के कारण पुत्री को मरवा नहीं सका. पर यह भविष्यवाणी सभी जानते थे। मकाकंस के मरने पर उसका पत्र कंस राजा हआ और उपकंस उपराजा । उन्होंने विचार किया-यदि हम बहिन को मारेंगे तो निन्दा होगी, अतः इसे अविवाहित रखें जिससे इसके सन्तान ही नहीं होगी। उन्होंने अपनी बहिन के निवास के लिए एक पृथक् मकान बना दिया और उसकी पहरेदारी पर नन्दगोपा और उसका पति अंधकवेणु नियुक्त कर दिये।
उस समय उत्तर मथुरा में महासागर नाम का राजा राज्य करता था। उसके सागर और उपसागर नाम के दो पुत्र थे। पिता मृत्यु के पश्चात् सागर राजा हुआ और उपसागर उपराजा हुआ। उपसागर और उपकंस दोनों मित्र थे। उनकी पढ़ाई एक ही आचार्य कुल में साथ-साथ हुई थी। उपसागर ने अपने भाई के अन्तःपुर में कोई दुष्टता की अतः वह भाई के भय से मथुरा से भागकर असितंजन
३६. हिन्दु मिलन मंदिर सूरत, वर्ष ६, अंक १-११ । ४०. पालि साहित्य का इतिहास पृ० २८० ।
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