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________________ १६४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण प्रगल्भ, धीर, विनयी, मातृ-भक्त, महान् वीर, धर्मात्मा, कर्तव्य परायण, बुद्धिमान्, नीतिमान् तथा तेजस्वी थे। आगमेतर साहित्य में भी श्रीकृष्ण का वही व्यक्तित्व अक्षुण्ण रहा है। नियुक्ति, चूरिंग, भाष्य और टीका ग्रन्थों में भी श्रीकृष्ण के जीवन से सम्बन्धित अनेक प्रसंग आये हैं, जिनका हमने अगले अध्यायों में यथास्थान उल्लेख किया है। आगमेतर साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्थ संघदासगणी विरचित वसूदेव हिण्डी है। १२ वसुदेव श्री कृष्ण के पिता थे। उन्हीं का भ्रमणवत्तान्त प्रस्तुत ग्रन्थ में है। देवकी लम्बक में श्रीकृष्ण के जन्म, आदि का वर्णन है। पीठिका में प्रद्य म्न, शाम्बकूमार की कथा, बलराम और श्री कृष्ण की अग्रमहिषियों का वर्णन है। इस ग्रन्थ की शैली का आधार गुणाढ्य कत बहत्कथा को बतलाया गया है। इस ग्रन्थ में कौरव-पाण्डवों का वर्णन भी हआ है पर विशेष नहीं इसकी भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है।४।। चउप्पन्नमहापुरिषचरियं१५-यह आचार्य शीलाङ्क की एक महत्वपूर्ण कृति है । इस में नौ प्रतिवासुदेवों को छोड़कर शेष चउप्पन्न महापुरुषों का जीवन उट्टङ्कित किया है। ४६, ५०, ५१ वें अध्याय में अरिष्टनेमि, कृष्ण वासुदेव और बलदेव का चरित्र चित्रित किया गया है, भाषा साहित्यिक प्राकृत है। १२. मुनि पुण्य विजय जी द्वारा सम्पादित, आत्मानन्द जैन ग्रन्थ माला भावनगर की ओर से सन् १९३०-३१ में प्रकाशित । इसका गुजराती भाषान्तर प्रोफेसर सांडेसरा ने किया है जो उक्त ग्रन्थ माला की ओर से ही वि० सं० २००३ में प्रकाशित हुआ है। १३. कथासरित्ससागर को भूमिका, पृ० १३ डा. वासुदेवशरण अग्रवाल। १४. प्राकृतसाहित्य का इतिहास, -डा. जगदीशचन्द जैन पृ० ३८२ १५. पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक द्वारा सम्पादित, प्राकृत ग्रन्थ परिषद् वाराणसी द्वारा सन १९६१ में प्रकाशित । गुजराती अनुवाद आचार्य हेमसागर सूरि द्वारा शेठ देवचन्द लालभाई द्वारा १९६६ में प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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