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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
१६५ नेमिनाहचरिउ-यह द्वितीय आचार्य हरिभद्र सूरि की महत्व पूर्ण रचना है। जिसका प्रथम भाग लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है, जिसमें भगवान् अरिष्टनेमि के पूर्व भव हैं।
भव-भावना- इसके रचयिता मल्लधारी आचार्य हेमचन्द्र सूरि हैं। उन्होंने वि, सं० १२२३ (सन् १९७०) में प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है। इसमें भगवान् नेमिनाथ का चरित्र, कंस का वृत्तान्त, वसूदेव देवकी का विवाह, कृष्ण-जन्म, कंस-वध, आदि विविध प्रसंग हैं। ____नेमिनाह चरिउ-यह आचार्य हरिभद्र सूरि की वि० सं० १२१६ की रचना है।
उपदेशमालाप्रकरण'- यह भी मल्लधारी हेमचन्द्र की ही कृति है। इसमें दान, शील, तप और भावना इन चार तत्वों का मुख्य रूप से प्रतिपादन किया गया है। उसमें तप द्वार में वसुदेव का चरित वणित हुआ है। ___कुमारपाल पडिबोह-(कुमारपाल प्रतिबोध) इसके रचयिता सोमप्रभसूरि हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में मद्यपान के दुर्गुण बताते हुए द्वारिका दहन की कथा दी गई है। तप के सम्बन्ध में रुक्मिणी की कथा आयी है।
कण्ह चरित- (कष्ण चरित्र) इस ग्रंथ के रचयिता तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि हैं। प्रस्तुत चरित में वसुदेव के पूर्वभव, कंस का जन्म, वसूदेव का भ्रमण, अनेक कन्याओं से पाणिग्रहण, कष्ण का जन्म,
१६. ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर संस्था, रतलाम द्वारा
वि० सं० १९९२ में दो भागों में प्रकाशित । १७. ऋषभदेव जी केशरीमल संस्था द्वारा सन् १९३६ में इन्दौर से
प्रकाशित । १८. यह ग्रन्थ गायकवाड ओरियंटल सीरीज, बड़ौदा से मुनि जिन
विजय जी द्वारा सन् १९२० में सम्पादित होकर प्रकाशित हुआ है, इसका गुजराती अनुवाद जैन आत्मानन्द सभा की ओर से
प्रकाशित हुआ। १६. केशरीमल जी संस्था, रतलाम द्वारा सन् १९३० में प्रकाशित ।
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