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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण हम यहाँ इस चर्चा में जाना नहीं चाहते किन्तु इतना स्पष्ट है कि महाभारत की कथा की अपेक्षा जैन कथा अधिक वास्तविकता लिए हुए प्रतीत होती है। भगवान् का विहार :
भगवान् अरिष्टनेमि के विहार का वर्णन आगमसाहित्य में विस्तार से नहीं मिलता है । अन्तकृद्दशांग में उनका मुख्य रूप से द्वारिका में पधारने का उल्लेख है। वे अनेक बार द्वारिका पधारे हैं । १3° एक बार वे भद्दिलपुर भी पधारे थे, ऐसा स्पष्ट वर्णन अनेक स्थलों पर आया है । १३१ भद्दिलपुर मलय जनपद की राजधानी थी जिसकी पहचान हजारीबाग जिले के भदिया नामक गांव से की जाती है । १३२ ____ आवश्यकनियुक्ति के अनुसार भगवान् अरिष्टनेमि ने अनार्य देशों में भी विहार किया था।१33 जिस समय द्वारिका का दहन हुआ उस समय भगवान् पल्हव नामक अनायें देश में विचरण कर रहे थे । १३४ यह अन्वेषणीय है कि यह पल्हव भारत की सीमा में था या भारत की सीमा से बाहर था ? प्राचीन पार्थीया (वर्तमान ईरान) के एक भाग को पल्हव या पण्हव माना जाता है। पहले उल्लेख किया जा चुका है कि श्रीकृष्ण की जिज्ञासा पर भगवान् अरिष्टनेमि ने द्वारवती के दहन की बात कही। उस समय भगवान् द्वारवती में
१२६. (क) प्रभावक चरित्र
(ख) भगवान महावीर नी धर्मकथाभो पृ० २४५ १३०. अन्तकृतदशा १३१. (क) अन्तकृतदशा वर्ग ३, अ०८
(ख) त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र १३२. जैनआगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ४७७ १३३. (क) मगहारायगिहाइसु मुणओ खेत्तारिएसु विहरिंसु । उसभोनेमि पासो, वीरो य अणारिएसुपि ।।
-आवश्यकनियुक्ति गा० २५६ (ख) विशेषावश्यकभाष्य गा० १६६६ १३४. उत्तराध्ययन सुखबोधा वृत्ति पत्र ३६
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