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________________ १५० भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण में अत्यन्त प्रज्वलित कर उनके मस्तक आदि स्थानों में पहनाये । पर पाण्डव मुनियों ने कर्मों को क्षय करने की भावना से उस दाह के भयंकर उपसर्ग को हिम के समान शीतल समझा। भीम, अर्जुन, और युधिष्ठिर ये तीन मुनिराज तो शुक्ल ध्यान से युक्त हो आठों कर्मों को क्षय कर मोक्ष गये। परन्तु नकुल और सहदेव अपने ज्येष्ठ भ्राताओं को जलते हुए देख कर कुछ आकुलचित्त हए, एतदर्थ सर्वार्थ सिद्ध में उत्पन्न हए ।१२५ महाभारत में : महाभारत में पाण्डवों के अन्तिम जीवन का प्रसंग अन्य रूप से चित्रित किया गया है। वह इस प्रकार है___ यादवों के सर्वनाश और श्रीकृष्ण के निर्वाण के शोकजनक समाचार जब हस्तिनापुर पहुंचे तो पाण्डवों के मन में विराग छा गया, उनमें जीवित रहने की इच्छा नहीं रही। अभिमन्यू के पूत्र परीक्षित को राजगद्दी पर बिठाकर पाँचों पाण्डव द्रौपदी को लेकर तीर्थयात्रा के लिए निकले। वे अन्त में हिमालय की तलहटी में पहुँचे । उनके साथ एक कुत्ता भी था। सभी ने पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया, चढ़ते-चढ़ते मार्ग में द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने क्रमशः शरीर त्याग दिया किन्तु सत्य-ब्रह्म का ज्ञान रखने १२६. ज्ञात्वा भगवतः सिद्धि पञ्च पाण्डवसाधवः । शत्रुञ्जयगिरौ धीराः प्रतिमायोगिनः स्थिताः ।। दुर्योधनान्वयस्तत्र स्थितो क्षुयवरोधनः । श्रुत्वागत्याकरोद्वैरादुपसर्ग सुदुस्सहम् ।। तप्तायोमयमूर्तीनि मुकुटानि ज्वलन्त्यलम् । कटकैः कटिसूत्रादि तन्मूर्धादिष्वयोजयत् ।। रौद्र दाहोपसर्ग ते मेनिरे हिमशोतलम् । -हरिवंशपुराण ६५।१८-२१ १२७. शुक्लध्यानसमाविष्टा भीमार्जुनयुष्धिठराः । कृत्वाष्टविधकर्मान्तं मोक्षं जग्मुस्त्रयोऽक्षयम् ॥ नकुलः सहदेवश्च ज्येष्ठदाहं निरीक्ष्य तौ। अनाकुलितचेतस्कौ जातौ सर्वार्थसिद्धिजौ ॥ -हरिबंशपुराण ६५।२२-२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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