SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर जीवन १४६ लगे। उन सभी पाण्डवों में भीमसेन मुनि ने घोर अभिग्रह ग्रहण किया कि भाले के अग्रभाग पर दिये गये आहार को ही ग्रहण करूगा । क्षुधा से उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया। छह माह के पश्चात् उनका पारणा हुआ । युधिष्ठिर आदि बेले-तेले की तपस्या करते हुए भूमण्डल पर विचरण करते रहे । १२१ । भगवान् अरिष्टनेमि उत्तरापथ से विहार कर सौराष्ट्र की ओर पधारे । २२ अन्तिम समय सन्निकट जानकर गिरनार पर्वत पर पधारे । १२3 अघातिया कर्मों को नष्ट कर अनेक सौ मुनियों के साथ निर्वाणप्राप्त हुए । २४ समुद्र विजय आदि नौ भाई, देवकी के युगलिया छह पुत्र, शंब और प्रद्य म्नकुमार आदि भी गिरनार पर्वत पर मोक्ष को प्राप्त हुए । १२५ - धीर वीर पाँचों पाण्डव मुनि, भगवान को मुक्त हुआ जानकर शत्र जय पर्वत पर प्रतिमायोग से विराजमान हुए।१२६ उस समय दुर्योधन के वंश का क्षयवरोधन नामक कोई पुरुष रहता था। ज्यों ही उसने पाण्डवों का आगमन सुना त्योंही वह वहां पर आया और उसने वैरवश घोर उपसर्ग करना प्रारंभ किया। उसने तपाये हुए लोहे के मुकुट, कड़े, तथा कटिसूत्र आदि बनाये और उन्हें अग्नि १२०. कुन्ती च द्रौपदी देवी सुभद्राद्याश्च योषितः । राजीमत्याः समीपे ताः समस्तास्तपसि स्थिताः ।। -हरिवंशपुराण ६४ १२१. कुन्ताग्रेण वितोर्णभक्ष्यनियमः क्षुत्क्षामगात्रः क्षमः । षण्मासै रथ भीमसेनमुनिपो निष्ठाप्य स्वान्तक्लमम् ॥ षष्ठाघैरुपवासभेदविधिभिनिष्ठाभिमुख्यैः स्थितै- । ज्येष्ठाद्य विजहार योगिभिरिलां जैनागमाम्भोधिभिः ।। -हरिवंशपुराण ६४११४६, पृ० ७६७ १२२. अथ सर्वामराकीर्णस्तीर्थकृत्कृतदेशनः । उत्तरापथतो देशं सुराष्ट्रममितो ययौ ॥ -हरिवंशपुराण ६५॥१ १२३. हरिवंशपुराण ६५०४ १२४. वहीं० ६५।१० १२५. वहीं० ६५।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy