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तीर्थंकर जीवन
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पर्वत पर गये, दो महीने की संलेषरणा से आत्मा को कृश कर, श्रेष्ठ केवलज्ञान केवलदर्शन को प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए । ११२ श्वेताम्बर परम्परा में :
श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य मल्लधारी देवप्रभसूरि ने पाण्डवचरित्र में ११३, व आचार्य हेमचन्द्र कृत- त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र११४ में, ज्ञातासूत्र के कथानक से एक बात अधिक है । वह यह कि पांचों पाण्डव मुनि जब हस्तीकल्प नगर में पहुँचते हैं तब वे परस्पर विचार करते हैं कि यहां से रैवतगिरि केवल बारह योजन दूर हैं जहां भगवान् अरिष्टनेमि विराज रहे हैं । मासखमण का पारणा आज न कर भगवान् अरिष्टनेमि के दर्शन करने के पश्चात् ही पारणा करेंगे । किन्तु भगवान् का दर्शन किये विना पारणा नहीं करेंगे । इस प्रकार प्रतिज्ञा ग्रहण की ही थी कि लोगों के मुंह से सुना कि रैवतगिरि पर भगवान् मोक्ष पधार गये हैं । पाण्डवचरित्र अनुसार तो एक चारणलब्धि धारी मुनिराज वहां पर पधारते हैं और भगवान् के मोक्षगमन के समाचार सुनाते हैं | समाचार सुनकर पाँचों मुनियों को अत्यधिक दुःख होता है कि हम भगवान् के दर्शन नहीं कर सके । वे सिद्धाचल पर्वत (पांडव चरित्र में विमलगिरि) पर गये, अनशन कर केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त कर मुक्त हुए ।
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सती द्रौपदी भी अन्त समय में आयुपूर्ण कर पाँचवें ब्रह्मदेव लोक में उत्पन्न हुई । ११५
१११. ज्ञातासूत्र १।१६
११२. ज्ञातासूत्र १।१६।१३५
११३ पाण्डवचरित्र, सर्ग १८, पृ० ५५० -५८१, गुजराती अनुवाद भीमसिंह माणेक, मुम्बई, सन् १८७८
११४. त्रिषष्टि० पर्व ८ सर्ग १२
११५. ( क ) तए णं सा दोवई अज्जा सुव्वयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाइ एक्कारस अंगाई अहिज्जइ २ ता बहूणि वासाणि मासियाए संलेहणाए आलोइयपडिक्कता कालमा से कालं किच्चा बंभलोए उववन्ना ।
-ज्ञातासूत्र १।१६, १३६
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