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________________ १४२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण बलदेव ने कहा-अरे मूर्ख, क्या पानी पिलाने से जला हुआ ठूठ हरा-भरा होगा? देव-यदि तुम्हारे कंधे पर रखा हुआ यह मुर्दा जीवित हो सकता है तो फिर इस ठठ में फल कैसे नहीं लगेंगे ? ___ बलदेव ने बिना सुने ही कदम आगे बढ़ा दिये । देव ने अब ग्वाले का रूप बनाया और एक मरी हुई गाय के मुह में वह घास देने लगा? ____ बलदेव ने कहा-अरे मूर्ख ! क्या मरी हुई गाय भी घास खाती है ? देव - यदि तुम्हारा मरा हुआ भाई जीवित हो सकता है तो फिर मृत गाय घास क्यों नहीं खायेगी ? बलदेव ने प्रत्येक के मुह से अपनी भाई के मरने की बात सुनी। वे गहराई से सोचने लगे- क्या वस्तुतः मेरा भाई मर गया है ? क्या ये सभी लोग सत्य कहते हैं ? ___ देव ने देखा-बलदेव चिन्तन के सागर में गहराई से गोते लगा रहे हैं। उसी समय उसने सिद्धार्थ सारथी का रूप बनाया और बलदेव से कहा-बलदेव ! मैं तुम्हारा सारथी सिद्धार्थ हूँ। मैंने भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की थी, और देव हुआ हूँ। आपने एक बार मुझसे कहा था कि तु यदि देव बने तो विपत्ति में मेरी सहायता करना । अतः मैं आपके पास आया हूँ। भगवान् अरिष्टनेमि ने जो भविष्य कथन किया था वैसे ही जरद्कुमार के हाथ से वासुदेव श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई है । श्रीकृष्ण ने अपना कौस्तुभ रत्न देकर तुम्हारे आने के पूर्व ही पाण्डवों के पास भेजा । भाई के मोह से तुम इन्हें उठाकर छहमाह से घूम रहे हो ! देखो न, अब इनके शरीर के वर्ण, गंध, रस, और स्पर्श सभी बदल गये हैं। बलदेव को विलुप्त संज्ञा जागृत हुई । उन्होंने उसी समय श्रीकृष्ण का दाहसंस्कार किया । सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान् अरिष्टनेमि ने अपने एक विद्याधर मुनि को वहां भेजा। मुनि ने बलदेव को उपदेश दिया। बलदेव ने मुनि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की । बलदेव मुनि अब उत्कृष्ट तप की आराधना करने लगे। .. मासखमण का पारणा था ! बलदेव मनि पारणा के लिए, नगर में प्रवेश कर रहे थे। उनके दिव्य और भव्य रूप को निहार कर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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