________________
तीर्थकर जीवन ।
१४१ क्रन्दन करने लगते हैं । आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित हो रही है ! भाई के शरीर को झकझोरते हुए कहते हैं--भाई उठो ! पानी पीलो ! मुझे पानी लाने में विलम्ब हो गया--और तुम रूठ गये ! रूठो नहीं, भाई पर क्या कभी इतने नाराज होते हैं। जरा आंख खोलो। मस्कराओ !" बलदेव ने अनेक प्रयास किये, पर सफलता कैसे मिलती ?
बलदेव ने श्रीकृष्ण के मृत कलेवर को उठाया। उसे कंधे पर लेकर वे एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमने लगे । स्वयं भी खानापीना भूल गये । छहमाह का समय पूर्ण हो गया।
बलदेव के एक सारथी का नाम सिद्धार्थ था, जो संयम-पालन कर देवपर्याय में उत्पन्न हुआ था। उसने अवधिज्ञान से बलदेव की यह अवस्था देखी। प्रतिबोध देने के लिए वह वहां आया। उसने देव-शक्ति से पत्थर के एक रथ का निर्माण किया । पहाड़ की चोटी से वह नीचे उतर रहा था, धड़ाम से विषम स्थान में गिरा और टूट कर चकनाचूर हो गया । सारथी पुनः उसे ठोक करने का प्रयास करने लगा। ___ उधर से बलदेव आये। उन्होंने देखा, सारथी मूखता कर रहा है । वे बोले-अरे मूर्ख ! यह पत्थर का रथ टुकड़ा-टुकड़ा हो चुका है, क्या पुनः यह सँध (जुड़) सकेगा ?
प्रत्युत्तर में देव ने कहा-हजारों व्यक्तियों को जिसने युद्ध में मार दिया, पर स्वयं न मरा, किन्तु विना युद्ध किये ही जो मर गया है वह यदि पुनः जीवित हो सकता हो तो फिर मेरा रथ क्यों नहीं तैयार हो सकता ?
बलदेव देव की बात अनसुनी कर आगे बढ़ गये । देव ने एक किसान का रूप धारण किया । पत्थर की चट्टान पर कमल पैदा करने का वह उपक्रम कर रहा था। बलदेव ने कहा-अरे मूर्ख ! क्या कभी पत्थर की चट्टान पर कमल पैदा होते हैं ? .. देव-यदि तुम्हारा मृत भाई जीवित हो सकता है तो पत्थर पर कमल क्यों नहीं पैदा हो सकते ?
मुह मचकाकर बलदेव आगे चले । देव भी आगे बढ़ा। वह एक जले हुए ठूठ को पानी पिलाने लगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org