________________
| तेरह
प्रतिभा के धनी और अपने समय के बहुमान्य महापुरुष थे । ज्ञातासूत्र के द्रौपदी सम्बन्धी 'अपरकंका' नामक १६ वें अध्ययन में श्रीकृष्ण का जो वर्णन मिलता है, उससे वे कितने तेजस्वी, वीर, शक्तिसम्पन्न और मान्य पुरुष थे, इसका सहज ही पता चल जाता है । पाण्डव- पत्नी द्रौपदी के स्वयंवर में श्रीकृष्ण वासुदेव आदि बड़े-बड़े राजा महाराजा पहुँचते हैं। वहां लिखा गया है कि उनके परिवार में समुद्रविजय आदि दशदशार्ह, बलदेव आदि पांच महावीर, प्रद्य ुम्न आदि साढ़े तीन करोड़ राजकुमार, शांब आदि साठ हजार दुर्दान्त बलवान, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा वहां पधारे थे ।
नारद द्वारा द्रौपदी की प्रशंसा सुनकर धातकी खंड द्वीप के पूर्ववर्ती दक्षिण भरत की अपरकंका नगरी का पद्मनाभ राजा, मित्रदेव द्वारा द्रौपदी का अपहरण करता है । तब श्रीकृष्ण अपनी बुआ कुन्ती के अनुरोध से अपरकंका पाण्डवों सहित जाते हैं और युद्ध में विजय प्राप्त कर द्रौपदी को वापस लाते हैं । उस समय पांचों पाण्डव युद्ध में हार जाते हैं, जब श्रीकृष्ण नरसिंह रूप धारण कर विजय प्राप्त करते हैं । लवणसमुद्र के अधिष्ठाता सुस्थितदेव श्रीकृष्ण के महान व्यक्तित्व के कारण ही रथ ले जाने का मार्ग ( लवण समुद्र में ) कर देता है । इससे मनुष्य तो क्या, देव भी उनकी धाक मानते थे व प्रभावित थे, सिद्ध होता है ।
पांच पाण्डव नौका से गंगा नदी पारकर जाते हैं, पर श्रीकृष्ण के लिए नौका को वापिस नहीं भेजते हैं, तब श्रीकृष्ण एक हाथ में घोड़ा, सारथी और रथ उठा लेते हैं और दूसरे हाथ से साढ़े बासठ योजन चौड़ी गंगा नदी को पार कर जाते हैं । ऐसा महान पराक्रम अन्य किसी में नहीं दिखाई देता । नौका वापिस न भेजने के कारण श्रीकृष्ण पाण्डवों पर कुपित होकर उनके रथों को एक लोहदण्ड द्वारा चूर्ण कर देते हैं और देश निकाला दे देते हैं । तब माता कुन्ती श्रीकृष्ण के पास द्वारका जाकर निवेदन करती है। कि तुम्हारा साम्राज्य तो सब दक्षिणार्ध भरत तक फैला हुआ है अतः बताओ पाण्डव जावे कहाँ ? अन्त में जहाँ श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के रथों को चूर्ण किया था । वहाँ पाण्डु मथुरा बसाकर रहने लगते हैं । पाण्डवों के समर्थक ( महाभारत के युद्ध आदि प्रसंग में ) श्रीकृष्ण का अनोखा व्यक्तित्व महाभारत सम्बन्धी प्राकृत संस्कृत और अपभ्रंश और हिन्दी राजस्थानी में काफी रचनाएँ की हैं । संघदास गणि रचित पांचवी शताब्दी के विशिष्ट प्राकृत ग्रन्थ-वसुदेवहिडी में श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण और अनेक
1
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org