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________________ बारह | ___ जैन धर्म में सर्वोच्च स्थान तीर्थकर महापुरुषों का है । वे जन्म जन्मान्तरों की साधना द्वारा सिद्धि प्राप्त करते हैं और अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा (जगह जगह निरन्तर विचरण कर) जनकल्याण का मार्ग प्रकाशित करते हैं । ऐसे निस्वार्थ-उपगारी महापुरुष मान्य और पूज्य होने ही चाहिये । परम्परागत दीर्घ समय तक उनके धर्म शासन से असंख्य व्यक्ति लाभान्वित होते रहते हैं । साधु साध्वी, श्रावक श्राविका इस चतुर्विध संघरूप तीर्थ की स्थापना करने से ही वे तीर्थंकर कहलाते हैं। प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में इस भरत क्षेत्र में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं । इस अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव हुए, जो आदिनाथ आदीश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति के वे महान पुरस्कर्ता थे। जन जीवन में अनेकों विद्याओं, कलाओं का प्रचार तथा लिपि और अंक विद्या का प्रर्वतन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से ही हुआ। ___ऋषभदेव के बाद बाईसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि, तेइसवें भगवान पार्श्वनाथ, चौबीसवें भगवान महावीर स्वामी विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए। आचार्य भद्रबाहु के कल्पसूत्र में पश्चानुपूर्वी से भगवान महावीर, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान नेमिनाथ और भगवान ऋषभदेव का संक्षेप में चरित्र वणित हैं । इससे इन चार तीर्थंकरों की विशेष प्रसिद्धि का सहज ही पता चल जाता है । आगे चलकर सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ जो पहले चक्रवर्ती भी थे, उनकी भी प्रसिद्धी बढ़ी, फलतः २४ में से ५ तीर्थंकरों को मुख्यता देते हुए अनेकों कवियों ने अपनी रचना के प्रारम्भ में उन्हें स्मरण किया है, नमन किया है और श्रीमद् देवचन्द्रजी, जो महानतत्वज्ञ और आध्यात्मिक महापुरुष अठारवीं शताब्दी में हो गये हैं, उनके रचित भक्तिभावपूर्ण 'स्नात्र पूजा' में भी इन पाँचों तीर्थंकरों को विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है। भगवान अरिष्टनेमि सम्बन्धी फुटकर विवरण तो स्थानांग और समवायांग सूत्र में प्राप्त है और ज्ञाता, अन्तगड, उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में भी वर्णन मिलता है पर व्यवस्थित रूप से कल्पसूत्र में ही सर्वप्रथम संक्षिप्त जीवनी मिलती है ! उसके बाद तो आवश्यकनियुक्ति, चूणि आदि अनेक ग्रन्थों में आपका पावन चरित्र प्राप्त होता है । आगे चलकर उन्हीं के आधार से एवं गुरु परम्परा से प्राप्त तथ्यों पर से स्वतन्त्र चरित्र ग्रन्थ अनेकों लिखे गये। प्रस्तुत ग्रन्थ द्वारा उनमें एक उल्लेखनीय अभिवृद्धि हुई है। पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण जैन आगमादि नन्थों के अनुसार बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति थे । उनका वर्चस्व बड़ा ही जबरदस्त था । वे बहुमुखी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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