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तीर्थंकर जीवन
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लगी। उसके अद्भुत और अनुपम सौन्दर्य को देखकर सभी लोग चकित थे ।
भगवान् अरिष्टनेमि सहस्राम्रवन में पधारे । सर्वत्र उत्साह और उमंग की लहर दौड़ गई । देवकी और श्रीकृष्ण भगवान् को वन्दन करने के लिए तैयार हुए। गजसुकुमार भी साथ हो लिया ।
जिस राजमार्ग से कृष्ण की सवारी जा रही थी, उसके समीप ही एक सुन्दर सुकुमार बाला अपनी सहेलियों के साथ गेंद खेल रही थी । वह खेल में इतनी तल्लीन थी कि उसे किसी के आने जाने का ज्ञान भी नहीं था । किन्तु श्रीकृष्ण की दृष्टि सोमिल ब्राह्मण की पुत्री सोमा की सुषमा पर टिक गई। श्रीकृष्ण ने गजसुकुमाल के साथ विवाह करने के लिए सोमिल से सोमा की मांग की। उसने श्रीकृष्ण का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
भगवान् के पावन प्रवचन को सुनकर गजसुकुमार के अन्तर्मानस में वैराग्य उछालें मारने लगा । उसने महल में पहुँचते ही प्रव्रज्या का प्रस्ताव रखा, देवकी का वात्सल्य, श्रीकृष्ण का स्नेह और भाइयों का मधुर हासविलास उसके मार्ग को रोक न सका ।
निवृत्ति के प्रशस्त पथ पर बढ़ने के लिए उसका मन मचल रहा था । उसने भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की और भगवान् अरिष्टनेमि की अनुमति प्राप्त कर वह कठोर साधना करने के लिए उसी दिन महाकाल नामक श्मशान में गया । उच्चार प्रश्रवण के लिए भूमि की प्रतिलेखना कर, शरीर को कुछ झुका, भुजाओं को पसार, नेत्रों को निर्निमेष रख, दोनों पैर एक साथ इकट्ठे कर एक रात्रि की महाप्रतिमा नामक तपश्चर्या ग्रहण कर खड़ा हो गया । सोमिल ब्राह्मण, समिध, दर्भ, कुश, पत्ते आदि लेकर सन्ध्या के समय वन से नगर की ओर आ रहा था । उसने देखा कि मेरा जामाता होने वाला गजसुकुमार आज मुण्डित होकर तपस्वी हो गया है । मेरी सुकोमल बेटी के जीवन के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ ! क्रोध मानव को अन्धा बना देता है । सोमिल के मन में क्रोध की आंधी उठी, और उसने उसके विवेक के दीपक को बुझा दिया । उसने श्रीकृष्ण की राजसत्ता और अखंड प्रलाप को भी विस्मरण कर दिया । उसने चारों दिशाओं में देखा । किसी को भो न देखकर
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