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________________ तीर्थकर जीवन ११५ तुम उनका समाधान करने के लिए यहां पर शीघ्र ही आयी हो ! क्या यह कथन सत्य है ? देवकी ने निवेदन किया-प्रभो ! जो आप फरमाते हैं वह सत्य है। मैं वही पूछने आयी हूँ कि क्या अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी मिथ्या हो गई ? ___ भगवान् अरिष्टनेमि ने रहस्य खोलते हुए कहा हे देवानुप्रिय ! भहिलपुर नामक में नाग गाथापति४८ निवास करता है, उसके सुलसा नामक भार्या है। जब वह बाल्यावस्था में थी तब किसी निमित्त ने कहा-सुलसा दारिका मतपूत्रों को जन्म देने वाली होगी। सुलसा बाल्यावस्था से ही हरिणगमेषी देव की उपासिका थी। वह प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान, कौतुक, मंगल आदि कर भीगी साड़ी पहने ही प्रथम उसकी पूजा-अर्चना करती और फिर अन्य कार्य करतो। उसकी भक्ति, बहुमान, और शुश्रूषा से हरिणगमेषी देव प्रसन्न हुआ। हरिणगमेषी देव सुलसा की अनुकम्पा से प्रेरित होकर सुलसा गाथा पत्नी को और तुम्हें एक ही काल में ऋतुमती करने लगा। तुम दोनों एक ही समय में गर्भवती होती, एक ही समय में गर्भवहन करती और एक ही समय में पूत्र को भी जन्म देतीं। सुलसा गाथापत्नी के मृत पुत्र को अपनी हथेली में उठाकर हरिणगमेषी देव तुम्हारे पास संहरण कर दिया करता था और तुम जिस सुकुमार बालक का प्रसव करतीं उसे वह उठा लेकर सुलसा के पास रख देता था। इस प्रकार हे देवकी ! ये छहों पुत्र वस्तुतः तुम्हारे ही हैं, न कि सुलसा गाथापत्नी के।" ___ यह बात सुनकर देवकी अत्यन्त प्रसन्न हुई । भगवान् अरिष्टनेमि को वन्दन नमस्कार कर, जहां वे छह अनगार थे वहां गई और उन्हें वन्दन नमस्कार किया। अपने प्यारे पुत्रों को निहार कर उसके स्तन से दूध की धारा बहने लगी। आनन्दाश्रु से उसके नेत्र भींग गये, कंचुकी ढीली हो गई, वलय टूट गये । मेघ की जलधारा से आहत कदम्ब के पुष्प की तरह उसके शरीर के रोम-रोम पुलकित ४८. हरिवंशपुराण में उनके पिता का नाम सुदृष्टि और माता का नाम अलका दिया है—देखें । -हरिवंशपुराण-५६।११५, पृ० ७०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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