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देस
है । वैसे तो मनुष्य असंख्य है पर उनमें मनुष्यत्व के गुण वाले विरले या बहुत ही कम पाये जाते हैं। स्थानांगसूत्र में उत्तम, मध्यम और जघन्य पुरुष के तीन तीन प्रकार बतलाये हैं। इनमें से उत्तम पुरुष के तीन प्रकार हैं-(१) धर्म पुरुष (२) भोगपुरुष और (३) कर्मपुरुष । अर्हन्त-तीर्थंकर आदि धर्म पुरुष हैं, चक्रवर्ती भोग पुरुष हैं और वासुदेव कर्म-पुरुष है । इसी स्थानांग सूत्र में ऋद्धिशाली मनुष्य पांच प्रकार के बतलाये हैं--(१) अरहन्त (२) चक्रवर्ती (३) बलदेव (४) वासुदेव और (५) अणगार । पांच प्रकार के उत्कृष्ट मनुष्य बतलाते हुए कहा गया है कि सर्वोकृष्ट अर्थात् सब प्रकार के उत्कर्ष को प्राप्त तीर्थंकर होते हैं । उसके बाद ही चक्रवर्ती आदि को स्थान प्राप्त है । स्थानांग सूत्र में तीन वंशों के तीन उत्तम पुरुष बतलाए गये हैं(१) अरहन्त वंश में अरिहन्त (२) चक्रवर्तीवंश में चक्रवर्ती (३) दशारवंश में बलदेव और वासुदेव । बलदेव और वासुदेव दोनों भाई-भाई होते हैं। वे एक ही पिता की सन्तान होने पर भी माता उनकी भिन्न-भिन्न होती हैं ।
समवायांग में कहा है कि भरत और ऐरवत क्षेत्र में प्रत्येक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल में ५४-५४ महापुरुष होते हैं :-२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती ६ बलदेव और ६ वासुदेव, इनमें से प्रस्तुत ग्रन्थ के चरितनायक भगवान अरिष्टनेमि बाइसवें तीर्थंकर हैं और श्रीकृष्ण नवमें-अंतिम वासुदेव हैं । उपरोक्त ५४ महापुरुषों के सम्बन्ध में चउपन्नमहापुरुषचरियं आदि ग्रन्थ रचे गये हैं । इन ५४ के साथ ६ प्रतिवासुदेवों को और जोड़कर ६३ शलाकापुरुष माने गये हैं। उनके चरित्रात्मकग्रन्थ-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि हैं । जैनागमों में उल्लिखित महापुरुषों सम्बन्धी इतना विवरण देने का तात्पर्य यह है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में वणित भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण दोनों जैन धर्म में भी महापुरुष के रूप में मान्य है। भगवान अरिष्टनेमि तो तीर्थंकर थे ही, श्रीकृष्ण भी आगामी चौवीशी में तीर्थकर होंगे । नयापेक्षया भूत व वर्तमान तीर्थंकरों की तरह भावी तीर्थंकर भी मान्य होते हैं ।
भारत आध्यात्मप्रधान देश है। यहां चक्रवर्ती सम्राटों और राजा महाराजाओं का इतना महत्व नहीं, जितना कि सदाचारी, साधक और भक्त व्यक्तियों का रहा है । बड़े-बड़े सम्राट अकिंचन, त्यागी, तपस्वी, गुणीजनों व महापुरुषों के चरणों में सदा श्रद्धावनत रहे हैं । जान की अपेक्षा यहां चारित्र-आचरण को अधिक महत्व दिया गया है । आचार को प्रथम धर्म माना गया है। बड़े-बड़े विद्वान, आत्मानुभवी अनपढ़ या साधारण पढ़े लिखे संत महात्माओं के चरणों में नतमस्तक रहते आये हैं । धर्म नायक या
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