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________________ भूमिका यह लोक या विश्व जड़ चेतनात्मक है। अनादिकाल से इस विश्व में चेतन और जड़का अद्भुत खेल खेला जा रहा है । विश्व के इन दोनों मूलभूत तत्वों में जैन धर्म ने अनन्त शक्ति मानी है। जड़ या पुद्गल की अनन्तशक्ति तो आज भौतिकविज्ञान द्वारा सर्वविदित हो रही है । चैतन्य की अनन्तशक्ति का साक्षात्कार भारतीय मनीषियो ने बहुत पहले ही किया था। उन्होंने कठोर साधना द्वारा सिद्धि प्राप्त की थी। समय-समय पर ऐसे अनेक महापुरुष हो गये हैं, जिन्होंने आत्मा के अनन्त ज्ञान-दर्शन और आनन्द को प्राप्त कर जगत के जीवों के कल्याण के लिए धर्म या आध्यात्म का विशिष्ट सन्देश प्रसारित किया। ऐसे महापुरुषों में जैन तीर्थकर भगवान अरिष्टनेमि और पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण भी उल्लेखनीय हैं । ये दोनों महापुरुष यदु कुल में उत्पन्न हुए थे एवं ये दोनों समकालीन ही नहीं, एक कुटुम्ब के ही थे। राजा समुद्रविजय के पुत्र भगवान् अरिष्टनेमि थे और समुद्र विजय के लघुभ्राता वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण थे। जैन आगमों में इन दोनों के घनिष्ठ सम्बन्ध के अनेकों उल्लेख प्राप्त हैं । परवर्ती ग्रन्थों में तो इन दोनों के विस्तृत जीवन चरित्र भी पाये जाते हैं अत: इन दोनों के संयुक्त जीवन चरित्र का जो यह विशिष्ट ग्रन्थ विद्वान् मुनिवर्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने बड़े परिश्रम व अध्ययन से तैयार किया है, वह बहुत ही समुचित एवं उपयोगी कार्य है। विश्व में अनन्त प्राणी हैं। उन सबमें मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। महाभारत में श्री व्यासजी ने बहुत ही जोरदार शब्दों में यह घोषणा की है कि मनुष्य से बढ़कर श्रेष्ठ और कोई भी (प्राणी) नहीं है । जैन आगम उत्तराध्ययन सूत्र में भी चार दुर्लभ वस्तुओं में पहली दुर्लभता मनुष्यत्व की ही बतलायी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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