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तीर्थंकर जीवन
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प्रतिपदा को हुआ ऐसा लिखा है। हमारी दृष्टि से यह श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा की तिथि संबंधी मान्यताओं का ही भेद है। __ अरिष्टनेमि भगवान् ने जिस स्थान पर दीक्षा ग्रहण की थी उसी स्थान पर उन्हें केवलज्ञान हुआ । १२ तीर्थ की संस्थापना :
भगवान् अरिष्टनेमि को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है, यह सूचना सहस्राम्रवन के रक्षपाल ने वासुदेव श्रीकृष्ण को दी। श्रीकृष्ण ने जब यह शुभ संवाद सुना तो उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता हुई। उन्होंने यह शुभ संवाद सुनाने के उपलक्ष में रक्षपाल को बारह कोटि सोनये दान में दिये । १3 श्रीकृष्ण उसी समय भगवान् अरिष्टनेमि को वन्दन करने व उनके उपदेश को सुनने के लिए अपने परिजनों व सोलह सहस्र अन्य राजाओं के साथ हस्ती पर आरूढ़ होकर भगवान् के समवसरण में पहुँचे ।१४ ___ भगवान् के त्याग-वैराग्य से छलछलाते हुए विशिष्ट प्रवचन को सुनकर वरदत्त राजा ने सर्वप्रथम दीक्षा ग्रहण की। उसके पश्चात् दो हजार अन्य क्षत्रियों ने भी संयम स्वीकार किया, यक्षिणी नामक राजकुमारी ने भी अनेक राजकन्याओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। श्रमणी यक्षिणी को प्रवर्तनी पद प्रदान किया।१५ दश दशाह,
११. षष्ठोपवासयुक्तस्य, महावेणोरधः स्थिते: । पूर्वेऽह्नयश्वयुजे मासि शुक्लपक्षादिमे दिने ।
-उत्तरपुराण ७१, श्लोक १७९-८० पृ० ८७ १२. उसभस्स पुरिमताले, वीरस्सुजुवालिआई नईतीरे । __ सेसाण केवलाई जेसुज्जाणेसु पव्वइया ।
-आवश्यक नियुक्ति २५४ १३. रूप्यस्स द्वादश कोटी: सार्धास्तेभ्यः प्रदाय सः ।
-त्रिषष्टि० ८।६।२८४, पृ० १३६ १४. त्रिषष्टि० ८।६।२८५, ८६, पृ० १३६ १५. (क) त्रिषष्टि० ८।६।३७७, पृ० १४२ (ख) जाया पवित्तिणी वि य जक्खिणी सयलाण अज्जाणं ।।
-भव-भावना ३७१२
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