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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
सूर्योदय की वेला बतलाई गई है जब कि कल्पसूत्र में आचार्य भद्रबाहु ने अमावस्या के दिन का पश्चिम भाग लिखा है । चउप्पन्नमहापुरिसचरिय, उत्तराध्ययन सुखबोधा' में समय का निर्देश नहीं है ।
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आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में" और आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में भगवान् अरिष्टनेमि का छद्मस्थ काल छप्पन दिन का माना है और भगवान् को केवलज्ञान आश्विन शुक्ला
३. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहेवासे इमीसे णं ओसप्पिणी तेवीसा जिणाणं सूरुग्गमण मुहुत्त सि केवलवरनाण दंसणे समुत्पणे । – समवायांग २३।२, पृ० ४७ कमलमुनि
४. तेवीसाए नाणं उप्पन्नं जिणवराणपुव्वहे । वीरस्स पच्छिमण्हे पमाणपत्ताए चरमाए ॥
- आवश्यक नियुक्ति गा० २७५, पृ० २०७
५. आश्विनस्यामावस्यायां पूर्वा त्वाष्ट्रगे विधौ । केवलज्ञानमुत्पेदे स्वामिनोऽरिष्टनेमिनः ॥
- त्रिषष्टि० ८२७७, पृ० १३६
६. पत्तस्स घाइकम्मे सयले खीणम्मि अट्टमतवेण । आसोय बहुलक्खे अमावसाय पुब्वहे ||
७. पन्नरसीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे ।
८. देखिए अनुवाद पृ० २५७ ६. उप्पन्नं तत्थ सुहज्झवसाणस्स केवलनाणं ।
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--भव-भावना ४६२३, पृ० २३७
- कल्पसूत्र १६५, पृ० २३३
आसोयअमावसाए अट्ठमभतंते
- उत्तराध्ययन सुखबोधा पृ० २८०
१०. षट्पञ्चाशदहोरात्रकालं सुतपसा नयत् ।। पूर्वाश्वयुजस्यातः शुक्ल प्रतिपदि प्रभुः । शुक्लध्यानाग्निना दग्ध्वा चतुर्घातिमहावनम् ॥ अनन्तकेवलज्ञानदर्शनादिचतुष्टयम् त्रैलोक्येन्द्रासनाकम्पि सम्प्रापत्परदुर्लभम् ॥
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- हरिवंशपुराण ५६, श्लो० १११-११३ पृ० ६४३-४४
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