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केवलज्ञान :
श्वेताम्बर आगम व आगमेतर साहित्य के अनुसार दीक्षा लेने के पश्चात् भगवान् अरिष्टनेमि चौपन रात्रि - दिवस तक छद्मस्थ पर्याय में रहे। इस बीच वे निरन्तर व्युत्सर्गकाय, और त्यक्तदेह हो ध्यानावस्थित रहे । वर्षा ऋतु का तृतीय मास आश्विन कृष्णा अमावस्या के दिन ऊर्जमन्त ( रैवत) नामक शैल - शिखर पर चित्रा नक्षत्र के योग में उन्हें अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात निरावरण प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हुआ ।
केवलज्ञान - दर्शन प्राप्त होने के पश्चात् अरिष्टनेमि अर्हत् जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हुए और वे सम्पूर्ण देव- मानव असुर सहित सारे लोक की द्रव्य सहित समस्त पर्यायों को जानने-देखने लगे । समवायाङ्ग', आवश्यकनियुक्ति त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित भव भावना आदि में भगवान् को केवलज्ञान की प्राप्ति का समय
तीर्थंकर जीवन
आसोय मावसाए नेमिजिणिदस्स चित्ताहि ।
२. कल्पसूत्र १६५, पृ० २३३
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- आवश्यक नियुक्ति २७३
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