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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
उग्रसेन, वसुदेव, बलराम, और प्रद्युम्न आदि सहस्रों व्यक्तियों ने श्रावक धर्म स्वीकार किया। शिवा, रोहिणी, देवकी, रुक्मिणी आदि हजारों महिलाएं श्राविका बनीं ॥१६
उस समय श्रीकृष्ण ने भगवान् अरिष्टनेमि से जिज्ञासा प्रस्तुत की - भगवन् ! राजीमती का आपके प्रति इतना अत्यधिक स्नेह क्यों है ? इस स्नेह का कारण क्या है ?१७
भगवान् ने समाधान करते हुए पूर्वभवों का सम्बन्ध बताया। पूर्वभवों के सम्बन्ध में हम पूर्व अध्याय में विस्तार से लिख चुके हैं । धनकुमार के भव में धनदत्त और धनदेव दोनों भाई थे, व अपराजित के भव में विमलबोध नामक मंत्री था - ये तीनों अरिष्टनेमि के पूर्वभवों के साथ सम्बन्धित थे । वे तीनों इस भव में राजा थे राजीमती के पूर्वभवों को सुनकर उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हुआ, और उन तीनों ने भी प्रथम समवसरण में दीक्षा ग्रहण की" और वे गणधर हुए | १९
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हरिवंशपुराण के अनुसार - उस समय दो हजार राजाओं ने, दो हजार राजकन्याओं ने, एवं दो हजार रानियों ने तथा हजारों अन्य लोगों ने जिनेन्द्र भगवान् के कहे हुए पूर्ण संयम को प्राप्त किया । शिवा देवी, रोहिणी, देवकी, रुक्मिणी तथा अन्य देवियों ने श्रावक धर्म स्वीकृत किया । यदुकुल और भोजकुल के श्रेष्ठ राजा तथा अनेक सुकुमारियाँ जिनमार्ग की ज्ञाता बनकर बारह अणुव्रतों की धारक हो गई । २०
(ग) समवायाङ्ग सूत्र १५७-४४
१६. ( क ) त्रिषष्टि० ८३७८, ३७६
(ख) भव - भावना, ३७२७, ३७२८, पृ० २४७ १७. राजीमत्या विशेषानुरागे किं नाम कारणम् ?
- त्रिषष्टि० ८ ३६५
१८. ( क ) त्रिषष्टि० ८।६।३७२-३७४
(ख) भव-भावना पृ० २४७
१६. नियचरियं सोऊणं जाईसरणेण सयमवि मुणे जं ।
बुद्धा निक्ता तेवि हु गणहारिणो जाया ॥
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- भव-भावना ३७२४
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