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साधक जीवन
भगवान् वहाँ से दूसरे दिन 'गोष्ठ' में पधारे । वरदत्त ब्राह्मण' ने उनको भक्ति-भाव से विभोर होकर परमान की भिक्षा दी। उसी से उन्होंने पारणा किया।
उत्तरपुराण में लिखा है-पारणा के दिन उन सज्जनोत्तम भगवान ने द्वारावती नगरी में प्रवेश किया। वहां सूवर्ण के समान कान्तिवाले तथा श्रद्धा आदि गुणों से सम्पन्न राजा वरदत्स ने भक्ति पूर्वक आहारदान दिया।'' आचार्यजिनसेन के हरिवंशपुराण के अनुसार भगवान् द्वारिकापुरो पधारे और प्रवरदत्त ने उनको खोर का आहार दान दिया।२ ___ आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकमलयगिरिवृत्ति में भगवान् अरिष्टनेमि के पारणे का स्थान द्वारिका लिखा है।
वहाँ से प्रभु ने घनघाती कर्मों को नष्ट करने के लिए सौराष्ट्र के विविध अंचलों में परिभ्रमण प्रारंभ किया।१४ भगवान् छदमस्थ अवस्था में किन-किन क्षेत्रों में पधारे इसका वर्णन प्राप्त नहीं है तथापि यह स्पष्ट है कि वे सौराष्ट्र में ही घूमे होंगे क्योंकि उनका छद्मस्थ काल सिर्फ पचपन दिन का ही है। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र ने आर्य और अनार्यदेशों में परिभ्रमण का उल्लेख किया है।
८. अथ गोष्ठे द्वितीयेऽह्नि वरदत्तद्विजौकसि । -त्रिषष्टि० ८।६।२५५ ६. समवायाङ्ग सूत्र १५६।२८ १०. समवायाङ्ग १५७।३१ ११. उत्तरपुराण ७१।१७५-१७६, पृ० ३८६ १२. हरिवंशपुराण ५२१२६ पृ० ६३३ १३. (क) वीरपुरं बारवई, कोवकडं कोल्लयग्गामो ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० ३२५ (ख) अरिष्ठनेमेरिवती।
-आवश्यक मलय० वृत्ति पृ० २२७ १४. तत्तो य घाइकम्मं वणं व तवहुयवहेण दहह्माणो। __ भयवं विहरइ आरियअणारिएसु च देसेसु ॥
-भव-भावना ३५८५ पृ० २३४
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