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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण ७० प्रकार सुशोभित हो रहे थे मानो मस्तक पर चूड़ामणि हो । सिर पर छत्र सुशोभित हो रहा था। दोनों ओर चमर बींजे जा रहे थे । दशार्ह चक्र से वे चारों ओर से घिरे हुए थे ।" वाद्यों से नभ मंडल गू ंज रहा था । चतुरंगिनी सेना के साथ उनकी बरात आगे बढ़ी जा रही थी । वह विवाह मण्डप के पास आयी । राजीमती ने दूर से अपने भावी पति को देखा । वह अत्यन्त प्रसन्न हुई । २ τ तोरण से लौट गये : उस युग में भी क्षत्रियों में मांसाहार का प्रचार था । राजा उग्रसेन ने बरातियों के भोजन के लिए सैकड़ों पशु और पक्षी एकत्रित किये। 3 वर के रूप में जब अरिष्टनेमि वहाँ पहुँचे तो उन्हें बाड़े में बन्द किए हुए पशुओं का करुण क्रन्दन सुनाई दिया | उनका हृदय दया से द्रवित हो गया । ୪ भगवान् ने सारथी से पूछा हे महाभाग ! ये सब सुखार्थी जीव बाड़ों और पिंजरों में क्यों डाले गये हैं ? सारथी ने कहा -- 'ये समस्त मूक प्राणी आपके विवाह कार्य में आये हुए व्यक्तियों के भोजन के लिए हैं। ६६. सव्वासही हि हविओ, कयको उयमंगलो | दिव्वजुयलपरिहिओ आभरणेहिं विभूसिओ ॥ ६ ॥ ७०. मत्त च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेट्ठगं । आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा । १० । ७१. ( क ) अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो सव्वओ परिवारिओ । ११ । (ख) त्रिषष्टि० २८ ।। पृ० १६६-१६७ ७२. त्रिषष्टि० ८ ।। पृ० १८७ ७३. उत्तराध्ययन सुखबोधा टीका पत्र २७६ ७४. अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुक्खिए || ७५. कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे वाडेहि पंजरेह च सन्निरुद्धा य Jain Education International — उत्तराध्ययन २२ । - उत्तराध्ययन २२।१४ सुहेसिणो । अच्छहि । १६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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