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________________ जन्म एवं विवाह प्रसंग को ही श्रेष्ठ समझने की भयंकर भूल करता है । उस समय रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, पद्मावती, गांधारी, लक्ष्मणा प्रभृति श्रीकृष्ण की पटरानियों ने स्त्री के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा-स्त्री के विना मानव जीवन अपूर्ण है, स्त्री अमृत है, नारी ही नारायणी है आदि । अपनी भाभियों के मोह से भरे हुए वचनों को सुनकर अरिष्टनेमि मौन रहे और उनकी अज्ञता पर मन ही मन मुस्कराने लगे। कुमार को मौन देखकर 'अनिषिद्धम् अनुमतम्' के अनुसार सभी रानियां आनन्द से नाच उठीं और सर्वत्र यह समाचार प्रसारित कर दिया कि अरिष्टनेमि विवाह के लिए प्रस्तुत हैं ।६६ पर अरिष्टनेमि अपने लक्ष्य पर ही स्थिर रहे। एकबार श्रीकृष्ण ने कहा-कुमार ! ऋषभ आदि अनेक तीर्थंकर भी गहस्थाश्रम के भोगों को भोग कर, परिणत वय में दीक्षित हुए थे। उन्होंने भी मोक्ष प्राप्त कर लिया। यह परमार्थ है।' अरिष्टनेमि ने नियति की प्रबलता जानकर श्रीकृष्ण की बात स्वीकार कर ली। श्रीकृष्ण ने समुद्रविजय को सारी बात कही। वे अत्यन्त प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने भोजकूल के राजन्य उग्रसेन से राजीमती को याचना की। राजीमती सर्व लक्षणों से संपन्न, विद्य त् और सौदामिनी के समान दीप्तिमती राजकन्या थी।६७ राजीमती के पिता उग्रसेन ने श्रीकृष्ण से कहा-कुमार यहाँ आएँ तो मैं उन्हें अपनी राजकन्या हूँ।”६८ श्रीकृष्ण ने स्वीकृति प्रदान की। दोनों ओर वर्धापन हआ। विवाह के पूर्व के समस्त कार्य सम्पन्न हुए। विवाह का दिन आया । बाजे बजने लगे। मंगलदीप जलाए गए । खुशी के गीत गाये जाने लगे। राजीमती अलंकृत हुई। अरिष्टनेमि को सर्व औषधियों के जल से स्नान कराया गया । कौतुक मंगल किये गये, दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाये गए।६९ वासुदेव श्रीकृष्ण के मदोन्मत्त गंधहस्ती पर वे आरूढ़ हुए। उस समय वे इस ६६. त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग , ६७. अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणी । सव्वलक्खणसंपुन्ना, विज्जुसोयामणिप्पभा ।। ७ ।। ६८. अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्ढियं । इहागच्छऊ कुमारी जा से कन्नं दलामहं ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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