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________________ जन्म एवं विवाह प्रसंग न लें।" उसी समय आकाशवाणी हुई कि अरिष्टनेमिकुमार अवस्था में ही प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे। आकाशवाणी को सुनकर श्रीकृष्ण चिन्तामुक्त हुए ।४८ वे पूर्वापेक्षया अरिष्टनेमि का अधिक सत्कार और सन्मान करने लगे, क्योंकि वे समझते थे कि अरिष्टनेमि मुझ से अधिक शक्तिसम्पन्न हैं। हरिवंशपुराण में : _आचार्य जिनसेन ने भगवान अरिष्टनेमि के पराक्रम का वर्णन कुछ अन्य प्रकार से किया है। वे लिखते हैं एक बार भगवान् अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण की राजसभा में गये। श्रीकृष्ण ने उनका सत्कार किया और वे सिंहासन पर आसीन हुए।४५ । उस समय सभा में वीरता का प्रसंग चल रहा था। वीरों की परिगणना की जा रही थी। किसी सभासद् ने वीर अर्जुन की प्रशंसा की तो किसी ने भीम की, और किसी ने युधिष्ठिर की। किसी ने आगे बढ़कर बलदेव के बल का बखान किया तो किसी ने श्रीकृष्ण के अपूर्व तेज का उल्लेख किया। तब बलदेव ने कहाप्रस्तुत सभा में अरिष्टनेमि के समान कोई भी बली नहीं है। श्रीकृष्ण ने यह सुनकर अरिष्टनेमि की ओर देखा तथा मधुर मुस्कान बिखेरते हुए कहा-आपके शरीर में ऐसा अपूर्व बल है तो आज बाहु युद्ध कर उसकी परीक्षा क्यों न कर लें ।५० ४८. (क) त्रिषष्टि० ८।६।३४-३६ (ख) उत्तराध्ययन सुखबोधा ४६. अथ स नेमिकुमारयुवान्यदा धनदसंभृतवस्त्रविभूषणैः । स्रगनुलेपनकैरतिराजितो नृपसुतैः प्रथितैः परिवारितः ।। समविशत्समदेमगतिर्नु पैरभिगत: प्रणतश्चलितासनैः । कुसुमचित्रसमां बलकेशवप्रभृतियादवकोटिभिराचिताम् ॥ हरिकृताभिगतिहरिविष्टरं स तदलङ कुरुते हरिणा सह । श्रियमुवाह परा तदलं तदा धृतहरिद्वयहारि यथासमम् ॥ -हरिवंशपुराण, ५५।१-२-३, पृ० ६१६ ५०. इति निशम्य वचोऽथ निशाम्य तं स्मितमुखो हरिरीशमुवाच सः । किमिति युष्मदुदारवपुर्बलं भुजरणे भगवान् न परीक्ष्यते ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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