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________________ -50 जो णयदिदि-विहीणा ताण ण वत्थु सरूव उपलब्दि । वत्थु-सहाव-विहूणा सम्मादिटठी कहं हुंति ॥ प्राचार्य देवसेन की एक और कृति पालाप-पद्धति है जो संस्कृत भाषा की कृति है और जिसम गुण, पर्याय, स्वभाव, प्रमाण, तप, गुणव्युत्पत्ति, प्रमाण का कथन, निक्षप की व्यत्पत्ति तथा तप के मेदों की व्युत्पत्ति का वर्णन मिलता है। इस प्रकार यद्यपि देवसेन की भावसंग्रह को छोड़कर सभी लघु रचनायें हैं किन्तु भाषा, विषय एवं शैली की दृष्टि से वे सभी उत्कृष्ट रचनायें हैं। कवि ने थोड़े से शब्दों में अधिक से अधिक विषय-प्रतिपादन का प्रयास किया है और इसमें वह पूर्ण सफल भी हुआ है। मुनि नेमिचन्द्र ___ 'नेमिचन्द्र' नाम वाले अनेक प्राचार्य हो गये हैं। अब तक विद्वानों की यह धारणा थी कि गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार तथा क्षपणासार के कर्ता प्राचार्य नेमिचन्द्र और द्रव्यसंग्रह क कर्ता नमिचन्द्र एक ही प्राचार्य हैं जो सिद्धान्ताचार्य की उपाधि से प्रसिद्ध हैं। किन्तु गत कुछ वर्षों में विद्वानों द्वारा की गयी खोज के आधार पर यह मान लियागया है कि द्रव्य-संग्रह एवं वहद-द्रव्यसंग्रह के कर्ता दूसरे नेमिचन्द्र हैं जिन्हें सिद्धान्तिदेव या नमिचन्द्र मनि कहा गया है। इसी तरह का उल्लेख वहद द्रव्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव ने ग्रंथ के परिचय में लिखा है। जिसके अनुसार द्रव्य-संग्रह धारा नगरी के स्वामी मण्डलेश्वर श्रीपाल के प्राश्रम नामक नगर में 20वें तीर्थकर निसुव्रतनाथ के चैत्यालय में भाण्डागार आदि अनेक नियोगों के अधिकारी सोमा नामक राजश्रेष्ठि के पठनार्थ लिखा गया था। यह प्राश्रम नगर 'प्राशारम्भ पट्टण' आश्रम पत्तन 'पट्टण' और पुटभेदन के नाम से उल्लिखित है। राजस्थान में बूंदी नगर से लगभग नौ मील की दूरी पर चम्बल नदी के तट पर केशोरायपाटन नाम का प्राचीन नगर है। इसे केशवराय पाटन, पाटन केशवराय भी कहते हैं। अपनी प्राकृतिक रम्यता के कारण यह स्थान आश्रमभूमि (तपोवन) के उपयुक्त होने के कारण आश्रम कहलाने का अधिकारी है। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डॉ. दशरथ शर्मा भी इस मत से सहमत है कि केशवराय पाटन ही पहिले पाश्रम नगर के नाम से प्रसिद्ध था। प्राचीन काल में यह नगर राजा भोजदेव के परमार साम्राज्य के अन्तर्गत रहा था। केशवराय पाटन में एक प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है जिसमें 12 वीं शताब्दी की प्राचीन एवं कलापूर्ण भूर्तियां हैं। मन्दिर में जो भूमिगत चैत्यालय हैं उससे पता चलता है कि स्थल रहा था। प्रस्तुत नेमिचन्द्र मनि की भी यही भूमि साधना-स्थल रही थी और यहीं पर उन्होंने लघु द्रव्य-संग्रह एवं वृहद द्रव्य-संग्रह की रचना की थी, इसमें सन्देह को कोई स्थान नहीं है। उक्त दोनों रचनायें ही जैन समाज में अत्यधिक लोकप्रिय रही हैं। वृहद् द्रव्य-संग्रह के पठन-पाठन का सर्वाधिक प्रचार है । लघु द्रव्य-संग्रह में कुल 25 गाथाय हैं। ग्यारह गाथाओं में द्रव्यों का, पांच गाथाघों में तत्वों और पदार्थों का तथा दो गाथाओं में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का कथन किया गया है। बृहद् द्रव्य-संग्रह में 58 गाथाएं है । इसमें तीन अधिकार है। इनम जीवद्रव्य, अजीवद्रव्य, पाव, बंध, संपर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वों का सुन्दर वर्णन किया गया है। जीव द्रव्य को जीव, उपयोगमय, अमूर्तिक, कर्ता, स्वदेहपरिमाण, भोक्ता, संसारी और स्वभाव से उर्ध्वगमन करने वाला बतलाया है । द्विविध मोक्षमार्ग का कथन करते हुए सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्न का लक्षण बतलाते हुए ध्यान का अभ्यास करन पर जोर दिया
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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