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ठक्कुर फेरु
ठक्कुर फेरु ये राजस्थान के कन्नाणा के निवासी श्वेताम्बर श्रावक थे । ये श्रीमालवंश hatter (कुल) गोतीय श्रेष्ठि कालिय या कलश के पुत्र थे। इनकी सर्वप्रथम रचना युगप्रधान चतुष्पदिका है, जो सं. 1347 में वाचनाचार्य राजशेखर के समीप अपने निवास स्थान नाणा में बनाई थी । इन्होंने अपनी कृतियों के प्रतं में अपने आपको "परमजंन" और जिणंदपय-भत्तों, लिख कर अपना कट्टर जैनत्व बताने का प्रयास किया है । "रत्न- परीक्षा" में अपने पुत्र का नाम 'हमपाल' लिखा है जिसके लिए प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गई है । इनके भाई का नाम ज्ञात नहीं हो सका है ।
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दिल्लीपति सुरताण अलाउद्दीन खिलजी के राज्याधिकारी या मंत्रि-मण्डल में होने से इनको बाद में अधिक समय दिल्ली में रहना पडा । इन्होंने 'द्रव्य परीक्षा' दिल्ली की टक्साल के अनुभव के आधार पर लिखी 'गणित-सार' में उस युग की राजनीति पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। गणित प्रश्नावली से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ये शाही दरबार में उच्च पदासीन व्यक्ति थे ।
इनकी सात रचनायें प्राप्त होती हैं जो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। जिनका सम्पादन मुनि श्री जिनविजयजी न "रत्न परीक्षा दिसप्त ग्रन्थ संग्रह' के नाम से किया है । 'युग प्रधान चतुष्पदिक' तत्कालीन लोक भाषा चोपाई व छप्पय में रची गई हैं और शेष सभी रचनाएं प्राकृत में हैं । भाषा सरल व सरस है । उस पर अपभ्रंश का प्रभाव है ।
जयसिंहसूर
'धर्मोपदेशमाला विवरण' 2 यह जयसिंहसूरि की एक महत्वपूर्ण कृति है जो गद्य-पद्य मिश्रित हूँ । यह ग्रन्थ नागौर में बनाया गया था । 3
वाचक कल्याणतिलक
वाचक कल्याणतिलक ने छप्पन गाथाओं में कालकाचार्य की कथा लिखी है । 4
हीरकलश मुनि
ही कलश मुनि ने सं. 1621 में 'जोइस हीर' ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ज्योतिष की गहराई को प्रकट करता है 15
1. प्रकाशक राजस्थान प्राय विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
प्रकाशक सिंघी जैन ग्रन्थ माला, बम्बई
नाउर - जिणायतणे समाणिय विवरण एव । धर्मोपदेशमाला प्रशस्ति 29
प ष्ठ 230
4. तीर्थंकर वर्ष 4, अंक 1 मई, 1974
2.
3.
5. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रन्थ 'जोई सहीरा' महत्वपूर्ण खरतरगच्छीय ज्योतिष ग्रन्थ । लेख, पृष्ठ 95 1