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________________ 38 बहिन सुन्दरी के लिए वि. सं. 1059 में की थी। इस ग्रन्थ में 279 गाथाएं हैं जिनमें 998 प्राकृत शब्दों के पर्याय दिये गये हैं। इस कोश में प्राकृत शब्द तथा देशी शब्द भी संग्रहीत हैं। ग्रमर के लिए भसल, इंदिदर, धुअगाय जैसे देशी शब्दों का इसमें प्रयोग है। सुन्दर के लिए 'लळं' तथा पालसी के लिए 'मट्ठ' शब्द प्रयुक्त हुए हैं। रिट्ठसमुच्चय 'रिट्ठसमुच्चय' के कर्ता प्राचार्य दुर्गदेव दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान् थे। इन्होंने वि. सं. 1089 में कुम्भनगर (कुंभेरगढ, भरतपुर) में इस ग्रन्थ को समाप्त किया था। यह ग्रन्थ उन्होंने 'मरणकरंडिया' नामक ग्रन्थ के आधार पर लिखा है, जिसमें मरण-सूचक अनिष्ट चिन्हों ) का विवेचन है। ग्रन्थ में कुल 261 प्राकृत गाथाएं हैं। पिंडस्थ, पदस्थ और रूपस्थ ये तीन प्रकार के रिष्ट इस ग्रन्थ में बताये गये हैं। ग्रन्थ में स्वप्न विषयक जानकारी भी दी गयी है तथा विभिन्न प्रश्नों द्वारा भी व्यक्ति के मरण की सूचना प्राप्त करने का इसमें विधान है।' (रिष्टो अर्घकाण्ड दुर्गदेव ने अग्धकंड' नाम का एक ग्रन्थ प्राकृत में लिखा है। इस ग्रन्थ से यह पता लगाया जा सकता है कि कौन-सी वस्तु खरीदने से और कौन-सी वस्तु बेचने से लाभ हो सकता है। इस ग्रन्थ का सम्बन्ध ज्योतिष से है। ज्योतिषसार हीरकलश 16वीं शताब्दी के विद्वान्थे । बीकानेर एवं जोधपुर राज्य में इनका विचरण अधिक हुआहै। नागौर के डेह नामक स्थान में इनका देहान्त हुआ था 14 इन्होंने वि. सं. 1621 में 'ज्योतिस्सार' की रचना प्राकृत में की थी। इसमें दो प्रकरण है। इस ग्रन्थ की प्रति बम्बई के माणिकचन्द्र भण्डार में है। इस प्राकृत ग्रन्थ का सार होरकलश ने राजस्थानी भाषा के 'ज्योतिषहीर' नामक ग्रन्थ में दिया है। औदार्यचिन्तामणि व्याकरण इसके रचयिता मनि श्रुतसागर है। ये उभय भाषा चक्रवर्ती यादि उपाधियों से विभ षित एवं विधानंदि के शिष्य थे। वि. सं. 1575 में इन्होंन 'पौदार्यचिन्तामणि व्याकरण 1. शास्त्री, प्रा. सा. पा. इ., पृ. 537-38 2. शाह, ज. सा. बृ. इ. भाग 5, पृ. 202-203 3. वही, पृ. 222 नाहटा, 'राजस्थानी भाषा के एक बड़े कवि हीरकलश' -शोधपंजिका वर्ष 7, ग्रंक 4 5. शाह, ज.सा.ब.इ. भाग 5, पृ. 186 6. साराभाई नबाब, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित । 7. शाह, ज. सा. बृ. इ., भाग 5, पृ. 74
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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