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________________ 37 की रचना की थी । इसकी पूर्ण पाण्डुलिपि प्राप्त है । अध्याय हैं । प्रायः हेमचन्द्र और त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरणों चिन्तामणि व्याकरण इसमें प्राकृत भाषा विषयक छह का इसमें अनुसरण किया गया है । भट्टारक शुभचन्द्रसूरि ने वि. सं. 1605 में इस ग्रन्थ की रचना की थी । इसमें कुल 1224 सूत्र हैं । हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण का इसमें अनुसरण किया गया है । इस ग्रन्थ पर लेखक की स्वोपज्ञवृत्ति भी है । 3 छंदोविद्या कवि राजमल्ल ने 16 वीं शताब्दी म 'छंदोविद्या' की रचना राजा भारमल्ल के लिये की थी । भारमल्ल श्रीमालवंश का एवं नागौर का संधाधिपति था । अतः राजमल्ल भी राजस्थान से सम्बन्धित रहे होंगे । राजमल्ल का छंदोविद्या नामक ग्रन्थ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी में निबद्ध है । प्राकृत अपभ्रंश का इसमें अधिक प्रयोग हुआ है । यह ग्रन्थ छन्दशास्त्र के साथ ही ऐतिहासिक घटनाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । छंदकोश 7. छंदकोश के रचयिता रत्नशेखरसूरि 15 वीं शताब्दी के विद्वान् थे । नागपुरीयतपागच्छ से था । अतः इनका कार्यक्षेत्र भी राजस्थान हो सकता है । 74 पद्य हैं। 46 पद्य अपभ्रंश में एवं शेष प्राकृत में हैं । कई प्राकृत छंदों का लक्षण इस ग्रन्थ में दिया गया है। 5 इनका सम्बन्ध छंदकोश में कुल प्राकृत के शिलालेख :--- राजस्थान में प्राकृत भाषा का प्रचार धर्म-प्रभावना एवं साहित्य तक ही सीमित नहीं था अपितु प्राकृत में शिलालेख आदि भी यहां लिखे जाते थे । जोधपुर से 20 मील उत्तर की ओर घटयाल नाम के गांव में कक्कुक का एक प्राकृत शिलालेख उत्कीर्ण है । यह शिलालेख वि. सं. 918 में लिखाया गया था । इसमें जैन मंदिर प्रादि बनवान े का उल्लेख है । 23 गाथाओं में यह शिलालेख है 16 इससे ज्ञात होता है कि कक्कुक प्रतिहार राजा ने अपने सदाचरण से मारवाड, माडवल्ल तमणी एवं गुजरात आदि के लोगों को अनुरक्त कर रखा था । यथा मरु माडवल्ल-तमणी परिका-मज्जगुज्जरत्तासु । जणि जेन जणाणं सच्चरित्रगुणेहि प्रणुदाहो ॥16 ॥ 1. ए नलस् आफ भंडारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट भाग 13, पृ. 52-53 1 शाह, वही, पृ. 74 1 2. 3. उपाध्ये, ए. एन. ए. भ. प्रो. रि. इ., वही, पृ. 46-521 4. शाह, वही, पृ. 138 1 5. शाह, वही, पृ. 149 | 6. मूल प्राकृत एवं हिन्दी अनुवाद के लिए द्रष्टव्य-शास्त्री, प्रा. सा. श्री. इ., पृ. 255-570
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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