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________________ षष्टिशत 35 इसके रचयिता नेमिचन्द्र भण्डारी मारवाड के मरोट गांव के निवासी थे । उन्होंने 161 गाथाओं में इस ग्रन्थ की रचना की है। इस रचना में जैन गृहस्थ व साधु के शिथिल प्राचार की कठोर आलोचना की गयी है । इसमें सद्गुरु एवं सदाचार के स्वरूप का भी प्रतिपादन है । विवेकविलास इस कृति के रचयिता जिनदत्तसूरि हैं । इन्होंने जाबालिपुर के राजा उदयसिंह की क 'पुत्र धनपाल के संतोष के लिए इस ग्रन्थ को लिखा था । 2 इस ग्रन्थ के 12 उल्लासों में मानव जीवन को नंतिक और धार्मिक बनान के लिए सामान्य नियमों का प्रतिपादन है । igator संग्रह आचार्य वीरनंदि के शिष्य पद्मनंदि ने इस ग्रन्थ की रचना वारांनगर ( कोटा ) में की थी । इसका रचनाकाल 11वीं शताब्दी होना चाहिए । इस ग्रन्थ में 2389 गाथाएं हैं, जिनमें जैन भूगोल के परिचय के साथ ही भगवान् महावीर के बाद की आचार्य परम्परा दी गयी है । पद्म'माय' नाम का एक और प्राकृत ग्रन्थ उपलब्ध है। इसमें 193 गाथाओं में धर्म का प्रतिपादन किया गया है । 4 इनके अतिरिक्त अन्य धार्मिक ग्रन्थ भी प्राकृत में राजस्थान में लिखे गये हैं । ये परिमाण छोटे और किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही लिखे जाते थे । जीवसत्तरी, अंगु लसत्तरि, प्रवचनपरीक्षा, द्वादशकुलक, कर्म विचार-प्रकरण, चैत्यवन्दनकुलक, विशिका, संदेह दोलावलि, अवस्थाकुलक आदि इसी प्रकार की धार्मिक रवनाए हैं। भाषा एवं विषय की दृष्टि से इनका अपना महत्व है । 6. लाक्षणिक ग्रन्थः --- राजस्थान के प्राकृत साहित्यकारों ने काव्य एवं धार्मिक ग्रन्थों के अतिरिक्त कोश, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष आदि पर भी प्राकृत में ग्रन्थ लिख हैं। इससे प्रतीत होता है कि जैनाचार्य जीवनोपयोगी प्रत्येक विषय पर प्राकृत में ग्रन्थ लिखते थे । लोकभाषा के विकास में उनका यह अपूर्व योगदान है । पाइयलच्छी नाममाला धनपाल ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश इन तीनों भाषाओं में रचनाएं लिखी हैं । उनकी 'पाइयलच्छी नाममाला' प्राकृत का प्रसिद्ध कोश ग्रन्थ है । इसकी रचना उन्होंने अपनी छोटी 1. मेहता, जै. सा. बृ. इ., भाग 4, पु. 211 2. वही, पृ. 217 3. प्रेमी, नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 259 4. जैन प्रा.सा. इ., पृ. 315-16
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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