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________________ 33 गणधरसाद्धशतक ___ इसके रचयिता जिनदत्तसूरि राजस्थान के प्रभावशाली साहित्यकार है । इनको चित्तोड़ में वि. सं. 1169 में प्राचार्यपद मिला तथा अजमेर में वि. स. 1211 में इनका अवसाम हुआ। इनकी 9-10 रचनाएं प्राकृत में हैं। गणधरसार्द्धशतक उनमें से एक है। भगवान् महावीर से लेकर जिनवल्लभसूरि तक के प्राचार्यों का गुणानवाद इस कृति में है।। यद्यपि चरित एवं काव्य की दृष्टि से यह कृति प्रौढ़ नहीं है, किन्तु इसकी ऐतिहासिक उपयोगिता है। इन चरितग्रन्थों के अतिरिक्त प्राकृत में और भी चरितकाव्य पाये जाते हैं जिनकी रचना गुजरात एवं राजस्थान के जैनाचार्यों ने की है । देवेन्द्रसूरि का कण्हचरियं, नेमिचन्द्र वृत महावीरचरियं, शांतिसूरिक्त पृथ्वीचन्द्र चरित, जिनमाणिक्यकृत कूर्मापुत्रचरित प्रादि उनमें प्रमुख हैं। 5. धार्मिक व दार्शनिक ग्रन्थः-- वैसे तो जैनाचार्यों द्वारा रचित सभी ग्रन्थों में धर्म व दर्शन का समावेश होता है। काव्य, चरित, कथा श्रादि ग्रन्थों में अध्यात्म की बात कही जाती है। किन्तु प्राकृत के इन ग्रन्थकारों ने कुछ ग्रन्थ धर्म व दर्शन के लिए प्रतिपादन के लिए ही लिखे हैं। प्रागमिक टीका आदि ग्रन्थों के अतरिक्त इस क्षेत्र के निम्न ग्रन्थ प्राकृत की महत्वपूर्ण उपलब्धि कहे जा सकते हैं। सम्मइसुत्त प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर का'सम्मइसूत्त' प्राकृत भाषा में लिखा गया दर्शन का पहला ग्रन्थ है। इसमें नय, ज्ञान, दर्शन आदि का संक्षप विवेचन है। अर्थ की जानकारी नय ज्ञान से ही हो सकती है, इस बात को प्राचार्य ने जोर देकर कहा है। यह ग्रन्थ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा में मान्य है। 5-6 वीं शताब्दी में लिखा गया यह ग्रन्थ हो सकता है, राजस्थान का प्रथम प्राकृत ग्रन्थ हो । योगशतक पाठवीं शताब्दी में प्राचार्य हरिभद्र ने राजस्थान में धर्म व दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों का प्राकत में प्रणयन किया है। उनमें योगशतक (जोगसयग) प्रमुख है। इस ग्रन्थ में योग का लक्षण योगी का स्वरूप, आत्मा-कर्म का सम्बन्ध, योग की सिद्धि आदि अनेक दार्शनिक तथ्यों को निरूपण है। 1. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि स्मृतिग्रन्थ, पृ. 23 2. संघवी, सुखलाल द्वारा सम्पादित एवं ज्ञानोदय ट्रस्ट अहमदाबाद से 1963 1 प्रकाशित । ३. मेहता, जै. सा. बृ. इ., भाग 4, पृ. 234
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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