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इसकी कथावस्तु कर्मफल, पुनर्जन्म एवं मूल वत्तियों के परिशोधन जैसी सांस्कृतिक विचारधाराओं पर आधारित है। पाठवीं शताब्दी के सामाजिक-जीवन का यथार्थ चित्र इस कृति में समाहित है। समाज की समृद्धि तत्कालीन व्यापार एवं वाणिज्य के विस्तार पर आधारित थी, जिसका सूक्ष्म विवेचन इसमें हुआ है। 1
___ इस कृति की अप्रतिम उपयोगिता इसकी भाषागत समृद्धि के कारण है । 2 संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं पैशाची के स्वरूप को सोदाहरण इसमें प्रस्तुत किया गया है। 18 देशों (प्रान्तों) की भाषा के नमूने पहली बार इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किये गये है। न केवल भाषा अपितु प्रत्येक प्रान्त के लोगों की पहिवान एवं उनके स्वभाव प्रादि का वर्णन भी कुव. में अपना महत्व रखता है। मारवाड के व्यापारियों का वर्णन करते हए कवि कहता है कि मारुक लोग बांके, सुस्त, जड़ बद्धिवाले, अधिक भोजन करने वाले तथा कठोर एवं मोटे अंगों वाले थे। वे "अप्पां-तुप्पां' (हम तुम) जैसे शब्दों का उच्चारण कर रहे थे। यथा--
बंके जडे या जड्डे बह-भोइ कठिण-पीण-सूणंगे । "अप्पा तुप्पां" भणिरे ग्रह पेच्छइ मारुए तत्तो ॥
(कुव. 153-3)
आठवीं शताब्दी के धार्मिक-जगत् का वैविध्यपूर्ण चित्र कुव. में उपस्थित किया गया है । उस समय के 32 मत-मतान्तरों की व्याख्या उद्योतनसरि ने जैन धर्म के परिप्रेक्ष्य में की है । शिक्षा एवं कला के क्षेत्र में उस समय के शिक्षण-संस्थान कितने महत्वपूर्ण थे, इसकी जानकारी भी इस ग्रन्थ में मिलती है। 3 कूवनयमलान केवल सांस्कृतिक अपितु काव्यामक दृष्टि से भी एक उत्कृष्ट कृति है। गद्य एवं पय में निबद्ध कई वर्णन बड़े मनोहारी हैं। संध्यावर्णन एवं लक्ष्मी वर्णन इसके प्रसिद्ध है। लक्ष्मी और नारी के स्वभावों का सुन्दर चित्रण निम्न' गाथा में द्रष्टव्य है
प्रालिंगियं पि मंचइ लच्छी पुरिसं ति साहस-विहणं । गोत्त-क्खलण-विलक्खा णियव्व दइया ण संदेहो ।।
(कुव. 66-19) कुव. में अनेक नीति-वाक्यों का प्रयोग हया है। कुछ सूक्तियां बड़ी सटीक हैं। यथा-- "मा अप्पय पसंसह जइ वि जसं इच्छसे विमलं ।” ( 43-32) (यदि विमल यश की आकांक्षा है तो अपनी प्रशंसा मत करो) "ज कुंभारी सूया लोहारी किं धयं पियउ" (कुम्हारी (स्त्री) के प्रसूता होने पर लुहारिन (स्त्री) को घी पिलाने से क्या )
1. जैन, प्रेम सुमन-"कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन"
वैशाली 1975 2. उपाध्ये, ए. एन., कुवलयमाला, इण्ट्रोडक्शन 3. जामखेडकर, कुवलयमालाकहा : ए कल्चरल स्टडी, नागपुर, 1974