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________________ समृद्ध है। 'समराइच्वकहा' एव धूताख्यान' के अतिरिक्त उन्होंने अपने टीका ग्रन्थों में भी अनेक प्राकृत कथाओं का प्रणयन किया है। समराइञ्चकहा यह ग्रन्थ प्राकृत कथाओं की अनेक विशेषताओं से युक्त है। इसमें उज्जैन के राजकुमार समरादित्य के नी भवों की कथा वणित है। पूर्व जन्म में समरादित्य गुणसेन था और उसका मित्र था-अग्निशर्मा। किन्हीं कारणों से अग्नि शर्मा ने गुण शर्मा को अपना अपमान करने वाला मान लिया । अतः वह उससे निरन्तर बदला लेने की योजना बनाता रहा। यह प्रतिशोध की भावना इन दानों व्यक्तियों के नौ जन्मों तक चलती रही। हरिभद्र नं कथा में इतना कौतूहल बनाये रखा है कि पाठक कथा पड़त समय प्रात्मविभार हो उठता है। प्रमुख कथा की अनेक अवान्तर कथाए विभिन्न विषयों पर प्रकाश डालती हैं। वस्तुतः यह कथा सदाचारी एवं दुराचारी व्यक्तियों के जीवन-संघर्ष की कथा है । देश, काल और वातावरण के अनुसार जन-जीवन से अनेक पात्र इस कथा में उभर कर सामने आते।। उनके चरित्र विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते है। कथाकार ने इसमें अनेक प्रतीकों का प्रयाग किया है। काव्यात्मक दृष्टि से इस कथा में अनेक मनोरम चित्र हैं। बाणभट्ट की 'कादम्बरी' ने जा स्थान संस्कृत में पाया है 'समराइच्चकहा' का साहित्यिक दृष्टि से वही स्थान प्राकृत-साहित्य में है। 'समराइचकहा' प्राचीन भारत के सांस्कृतिक जीवन का जीता-जागता उदाहरण है। समाज,धर्म, शिक्षा, कला आदि अनेक विषयों की प्रभूत सामग्री इसमें उपलब्ध है। विदेशों से समुद्रयाना के कई प्रसग इसमें वर्णित है। प्राकृत में गद्य एवं पद्य में लिखी हुई यह कथा मानवजीवन के उस चरम लक्ष्य का भी निरूपण करती है, जा व्यक्ति को इस संसार के पुनरागमन सं मुक्ति दिलाता है। इस संबंध में मधुबिन्दु का दृष्टांत बड़े सुन्दर ढंग से इस कथा में प्रस्तुत किया गया है । लघुकथायें हरिभद्र ने अपनी दशवकालिक टीका में तीस एवं उपदेशपद में लगभग 70 प्राकृत कथायें दी है। इनमें से कुछ कथायें घटना-प्रधान तथा कुछ चरित्र-प्रधान है। कुछ कथाओं में बुद्धि का चमत्कार है ता कुछ कथायें पाठकों का स्वस्थ मनोरंजन करती हैं। नीति एवं उपदेश-प्रधान कथायें भी हरिभद्र ने लिखी है। बुद्धि चमत्कार की एक लघु कथा द्रष्टव्य है-- कोई एक गाड़ीवान अपनी गाड़ी में अनाज भरकर एवं गाड़ी में तीतर का पिंजड़ा बांधकर शहर में अनाज बेचने आया। शहर के ठग ने उससे तीतर के दाम पूछे। गाड़ीवान ने सहजभाव से कहा---'दो कर्षापण'। ठग न इस सौदे का गवाह बनाकर वह तीतर का पिंजड़ा अनाज से भरी गाड़ी समेत दा कर्षापण में खरीद लिया। गाड़ीवान बलों को लेकर गांव लौटने लगा। तभी शहर के एक सज्जन व्यक्ति ने उसे एक उपाय बताया। तदनुसार वह गाड़ीवान अपने 1. शास्त्री, हरिभद्र की प्राकृत कथामों का भाचोचनात्मक परिणीवन, वैशाली । . बाबी, पा, गा, पाक, पृ. 426।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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