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प्राकृत ग्रन्थों की रचना की।1. मरुकोट के निवासी नेमिचन्द्र भण्डारी ने इस शताब्दी में 'षष्टिशतक' नामक प्राकृत ग्रन्थ लिखा । ये भण्डारी गृहस्थ लेखक थे। खरतरगच्छ के जैनाचार्यों से प्रभावित थे।
चौदहवीं शताब्दी के प्राकृत ग्रन्थकारों में ठक्कर फेरु का महत्वपूर्ण स्थान है। ठक्कर फेर कलश श्रेष्ठी के पौत्र ओर चन्द्र श्रावक के पुत्र थे। वधंधकुल में हये थे और कन्नाणपुर में रहते थे। दिल्ली में बादशाह अलाउद्दीन के यहां ये खजांची रहे हैं 13 इनके वंश आदि के आधार पर इन्हें राजस्थान का स्वीकार किया जा सकता है। ठकर फेरु ने अनेक लाक्षणिक ग्रन्थों की रचना की है। इनके वास्तुसार', 'गणितसार की मुदी', 'ज्योतिस्सार' आदि ग्रन्थ प्राकृत में है।
___15-16वीं शताब्दी में भी राजस्थान में प्राकृत की रचनायें लिखी जाती रही हैं। जिमभद्रसूरि, (कुंभलमेर), नवरंग (वीरमपुर), मुनिसुन्दर (सिरोही), जिनहर्षगणि (चित्तौड़), राजमल्ल (नागौर), जयसोम (जोधपुर) आदि अनेक जैनाचार्यों ने इस शताब्दी में महत्वपूर्ण रचनायें लिखी हैं। जिनसत्तरि, विधिकन्दली, अंगलसतरी, रयणसेहर कहा, छंदोविद्या आदि प्रात रचनायें उनमें प्रमुख हैं। दिवाकरदास की 'गाथाकोष सप्तशती', हीरकलश का 'ज्यातिषसार', शुभचन्द्रसूरि का 'चिन्तामणिव्याकरण', साधुरंग की 'कर्म विचारसार प्रकरण'
आदि 17वीं शताब्दी की प्राकृत रचनायें हैं।4 मेघविजय उपाध्याय एवं उपाध्याय यशोविजय आदि ने 18वीं शताब्दी में भी प्राकृत के ग्रन्थ लिखे हैं। किन्तु 15वीं शताब्दी के बाद राजस्थान में प्रात-साहित्य की वह समृद्धि नहीं रही जो मध्ययुग के पूर्व में थी।
प्राकृत रचनामों के विषय
राजस्थान की इन प्राकृत र वनाओं में विषय को विविधता है। भारतीय साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधाडो जा राजस्थान के इन प्राकृत साहित्यकारों की लेखनी से अछाती रही हो। काव्य, कथा, चरित, चम्प, कोश, व्याकरण, छंद, अलंकार प्रादि अनेक विषयों की प्राकृत रचनाएं यहां उपलब्ध हैं। धर्म व दर्शन को प्रतिपादित करने वाली भी सैकड़ों रचनाएं प्राकृत में लिखी गई है। व्यंग्य-हास्य एवं नैतिक आदर्शों को प्रतिपादित करने वाले प्राकृत ग्रन्थों की कमी नहीं है। राजस्थान में विकसित प्राकृत को शताधिक रचनामों में से कुछ प्रतिनिधि ग्रन्थों का सक्षिप्त मूल्यांकन यहां प्रस्तुत है ।
1. कथा-ग्रन्थ:
प्राकृत में कथा-साहित्य सबसे अधिक समृद्ध है। पहली शताब्दी से प्राकृत कथाओं की रचना प्रारम्भ हो गयी थी। राजस्थान में प्राचार्य हरिभद्र का प्राकृत कथा साहित्य पर्याप्त
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1. जैन, प्रा. सा. इ., पु. 5611
2. मेहता, जे. सा. ब. इ., भाग 4, पृ. 211। 2. शाह, ज. सा. बु..भाग 5, पृ. 242 । • दष्टव्य-शाह, ज. सा, बु. इ., भाग 51