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लगभग वि. सं. 1122-1140 के बीच में इन्होंने 'रयणचूडरायचरियं' की रचना की । ग्रन्थ डिडिल व सन्निवेश में प्रारम्भ कर उन्होंने चड्डावलिपुरी में इस पूरा किया था ।। होता है कि चन्द्रसूरि का कार्यक्षेत्र गुजरात एवं राजस्थान दोनों था 12
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मध्य युग
आचार्य हेमचन्द्र 11-12 वीं शताब्दी के बहुश्रुत विद्वान् थे । प्राकृत-साहित्य के क्षेत्र में भी उनका पूर्व योगदान है । किन्तु उनका कार्यक्षेत्र गुजरात ही रहा है । राजस्थान में भ्रमण कर उन्होंने प्राकृत में किसी ग्रन्थ की रचना की हो ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं है । 3 श्रतः हेमचन्द्राचार्य की प्राकृत रचनाओं को यहां सम्मिलित नहीं किया है ।
यह
प्रतीत
राजस्थान में बारहवीं शताब्दी में भी अनेक प्राकृत ग्रन्थ लिखे गये हैं । खरतरगच्छ के प्राचार्यों ने जैन साहित्य की पूर्व सेवा की है। अभयदेवसूरि नवांगीवृत्तिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनकी 30 रचनाओं में से 19 रचनायें प्राकृत की हैं । आपका राजस्थान व गुजरात में विचरण होता रहता था। जिनवल्लभसूरि की 17 रचनाएं प्राकृत में उपलब्ध हैं। वि. सं. 1167 में इन्हें चित्तौड़ में आचार्य पद मिला था । नागौर, मरुकोट, विक्रमपुर श्रादि में आपने साहित्य-सृजन किया है 14 जिनदत्तसूरि का कार्यक्षेत्र राजस्थान भी था । इमकी 10-12 रचनायें प्राकृत में उपलब्ध हैं 15 जिनचन्द्रसूरि ने जालौर में 'संवेग रंगशाला' प्राकृतग्रन्थ लिखा था । लक्ष्मणगणिनो ई. सन् 1142 में माण्डलगढ़ में 'सुपासनाहचरियं' की रचना की थी। वर्द्धमानसूर का 'आदिनाथ चरित' इस शताब्दी की प्रमुख रचना है। मड़ता में मधारी हेमचन्द्रसूरि ने भवभावना ( उपदेशमाला ) की रचना की थी । यह इनकी प्रसिद्ध प्राकृत रचना है 17 गुणचन्द्रमणि इस शताब्दी के प्रमुख रचनाकार है । 'कहारयणकोस' और 'पासनाहचरियं' इनकी प्रसिद्ध प्राकृत रचनायें हैं ।
तेरहवीं शताब्दी के बाद राजस्थान और गुजरात में राजस्थानी व गुजराती भाषा का विकास प्रारम्भ हो गया था । अतः प्राकृत अपभ्रंश की अपेक्षा प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य लिखा जाने लगा था। फिर भी प्राकृत की रचनायें राजस्थान में लिखी जाती रहीं । भिन्नमाल कुल में उत्पन्न श्रास कवि ने वि. सं. 1248 में 'विवेगमंजरी' नामक प्राकृत ग्रन्थ लिखा । देवेन्द्रसूरि ने आबू क्षेत्र में विचरण करते हुये 'सुदंसणाचरियं' एवं ' कण्हचरियं' नामक
1. डिडिलवनिवेसे पारद्धा संटिठएण सम्मत्ता । चड्डावल्लिपुरीए एसा फग्गणचउम्मासे ॥22॥
2. देसाई - जं. सा. सं. इ.
3. बांठिया, कस्तूरमल, 'हेमचन्द्राचार्य जीवन चरित' 1967 |
4. 'मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि स्मृति ग्रन्थ, पृ. 201
माहटा: 'दादा जिनदत्तसूरि' ।
6. देसाई - जं. सा. सं. इ., पृ. 2751
7. जैन, जगदीशचन्द्र, 'प्राकृत साहित्य का इतिहास' पू. 5051
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