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________________ राजस्थान का प्राकृत-साहित्य ; 2 -~-डॉ.प्रेमसुमन जैन राजस्थान की साहित्यिक समृद्धि में प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत भाषा की रचनाओं का महत्वपूर्ण योग है। प्राचीन ग्रन्थों की प्रशस्तियां, लेख, पट्टावलियां आदि के उल्लेख एवं राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध इन भाषाओं के ग्रन्थ इस बात के साक्षी हैं कि जैनाचार्यों ने अपना अधिकांश समय राजस्थान के सांस्कृतिक विकास में व्यतीत किया है12 प्राकृत भाषा में लिखे गये ग्रन्थों का सर्वेक्षण व मूल्यांकन राजस्थान के जैनाचार्यों की इस थाती को और स्पष्ट करता है। राजस्थान की इस साहित्यिक सम्पदा का एक प्रामाणिक इतिहास प्राधमिक शैली में लिखा जाना नितान्त अपेक्षित है। प्राकृत साहित्य के साहित्यकारों एवं उनकी रचनाओं को राजस्थान से सम्बन्धित बतलाने में जिस आधारभूत सामग्री का उपयोग किया जा सकता है वह है-(1) ग्रन्थों की प्रशस्तियां व वृत्तियों में राजस्थान के नगरों व मन्दिरों का उल्लेख, (2) रचनाकारों के गच्छ व गुरु परम्परा का राजस्थान से संबंध, (3) प्रतिमालेखों, अभिलेखों व पट्टावलियों में ग्रन्थ व ग्रन्थकार से संबंधित उल्लेख तथा (4) राजस्थान की प्रसिद्ध जातियों व राजवंशों से ग्रन्थकारों का संबंध पादि। इन तथ्यों के अतिरिक्त गुजरात, मालवा एवं दिल्ली के प्राचीन इतिहास मादि में भी राजस्थान के रचनाकारों व प्राचार्यों का परिचय यत्र-तन्त्र उपलब्ध हो जाता है। दूसरी बात यह है कि जैन प्राचार्यों के भ्रमणशील होने के कारण बहुत से गुजरात आदि के ग्रन्थकारों ने भी राजस्थान में रचनायें की हैं तथा उन्हें सुरक्षित रखा है। इस तरह के सभी प्रमाणों के आधार पर राजस्थान के प्राकृत-साहित्य का मूल्यांकन किया जा सकता है। राजस्थान की साहित्यिक परम्परा यह कह पाना कठिन है कि राजस्थान में सर्व प्रथम किस भाषा में और कौन-सा ग्रन्थ लिखा गया? इसके उत्तर के लिये अनुश्रुति और उपलब्ध प्रमाणों को जांचना होगा। राज. स्थान में ऐसी मनुश्रति है कि प्राचीन समय में इस प्रदेश में सरस्वती नदी बहती थी, जिसके किनारे बैठकर कभी मुनियों ने वेद की रचनायें एवं अन्य ग्रन्थ लिखे थे। इस मिय को प्रमाणित करना 1. द्रष्टव्य-लेखक का निबन्ध-"राजस्थान में अपभ्रंश और जैन संस्कृत साहित्य" -जन सस्कृति और राजस्थान । 2. जन, कैलाशचन्द्र,-"जैनिज्म इन राजस्थान" । . शर्मा, दशरथ, "राजस्थान ध्र द एजेज', बीकानेर, 1971 । - द्रष्टव्य-देसाई मोहनलाल दलीचन्द-"जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास- 19331 .. नाहटा अगरचन्द-"राजस्थानी साहित्य की गौरवपूर्ण परम्परा" 1967 ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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