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________________ a इन प्रकीर्णकों के अतिरिक्त तित्थुगालिय, अजीवकप्प, सिद्धपाहुड, पाराहण पगास, दीवसायरपण्णति, जोइसकरंडक, अंगविज्जा, पिंडविसोहि, तिहिपइण्णग, सारावलि, पज्जंताराहणा, जीवविभत्ति, कवच-पकरण और जोगिपाहुड ग्रन्थों को भी प्रकीर्णक श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है । 2. आगमिक व्याख्या साहित्य उपर्यत अर्धमागधी प्रागम साहित्य पर यथासमय निर्यक्ति.भाष्य चणि टीका.विवरण: वृत्ति, प्रवचूणि, पंजिका एवं व्याख्या रूप में विपुलसाहित्य की रचना हुई है। इनमें प्राचार्यों न आगमगत दुर्बोध स्थलों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इस विधा में नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टोका साहित्य विशेष उल्लेखनीय है। क. नियुक्ति साहित्यः-जिस प्रकार यास्क ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिये निरुक्त की रचना की उसी प्रकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने आगमिक शब्दों की व्याख्या के लिये नियुक्तियों का निर्माण किया है। ये नियुक्तियां निम्नलिखित दस ग्रन्थों पर लिखी गई है-आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध वृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित । इनमें अन्तिम दो नियुक्तियां उपलब्ध नहीं हैं। इन नियुक्तियों की रचना प्राकृत पद्यों में हुई है । बीच-बीच में कथाओं और दृष्टान्तों को भी नियोजित किया गया है। सभी नियुक्तियों की रचना निक्षेप पद्धति म हई है। इस पद्धति में शब्दों के अप्रासंगिक अर्थों को छोड कर प्रासंगिक अर्थों का निश्चय किया गया है। आवश्यकनियुक्ति में छः अध्ययन हैं :-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । इसमें सप्त निन्हव तथा भगवान् ऋषभदेव और महावीर के चरित्न पालेखन हा है। इस निर्यक्ति पर जिनभद्र,जिनदासगणि, हरिभद्र, कोट्याचार्य, मलयगिरि मलधारी हेमचन्द्र, माणिक्यशेखर आदि प्राचार्यों ने व्याख्या ग्रन्थ लिखें। इसमें लगभग 1650 गाथायें है । दशवकालिक नियुक्ति ( 341 गा.) में दश, काल आदि शब्दों का निक्षेप पद्धति से विचार हुआ है। उत्तराध्ययन नियुक्ति (607 गा.) में विविध धार्मिक और लौकिक कथाओं द्वारा सूत्रार्थ को स्पष्ट किया गया है। प्राचारांग नियुक्ति (347 गा.) में प्राचार, अंग ब्रह्म चरण आदि शब्दों का अर्थ निर्धारण किया गया है। सूत्रकृतांग नियुक्ति (205 गा.) में मत मतान्तरों का वर्णन है । दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति में समाधि, स्थान, दक्ष, श्रृंत आदि का वर्णन है । वृहत्कल्प नियुक्ति (559 गा.) और व्यवहार नियुक्ति भाष्य मिश्रित अवस्था में उपलब्ध होती है। इनके अतिरिक्त पिण्डनियुक्ति, प्रोधनियुक्ति, पंचकल्प-नियुक्ति, निशीथ-नियुक्ति, और संसक्तनियुक्ति भी मिलती है। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से इन नियुक्तियों का विशेष महत्व है। ख. भाष्य साहित्य:-नियुक्तियों में प्रच्छन्न गूढ विषय को स्पष्ट करने के लिए भाष्य लिखे गये। जिन पागम ग्रन्थों पर भाष्य मिलते हैं वे हैं-आवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, बृहत्कल्प, पंचकल्प, व्यवहार, निशीथ, जीतकल्प,अोधनियुक्ति और पिण्डनियुक्ति । ये सभी भाष्य पद्यबद्ध प्राकृत में हैं। आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य मिलते हैं-मूलभाष्य, भाष्य और विशेषावश्यकभाष्य । विशेषावश्यकभाष्य आवश्यकसूत्र के मान प्रथम अध्ययन सामायिक पर लिखा गया है फिर भी उसमें 3603 गाथायें हैं। इसमें प्राचार्य जिनभद्र (लगभग विक्रम संवत 650-660) ने जैन ज्ञान और तत्वमीमांसा की दृष्टि से सामग्री को संकलित किया है। योग, मंगल,पंचज्ञान, सामायिक, निक्षप, अनुयोग, गणधरवाद, मात्मा और कर्म,प्रष्ट निन्हव, प्रायश्चित्त विधान प्रादि का विस्तृत विवेचन मिलता है। जिनभद्र का ही दूसरा भाष्य जीतकल्प (103 गा.)
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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