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Antar at साइज एक होने से सभी पत्तों में एक जैसी लकीरें पंक्तियां श्राती थीं। जहां विभागीय परिसमाप्ति होती वहां लाल स्याही से विराम चिन्ह एवं प्रारम्भ में ||60|| श्रादि तथा अंत में ॥ छ ॥ की पद्धति ताडपत्रीय लेखन के अनुसार ही प्रचलित थी । पुष्पिका संवृत आदि पर ध्यान श्राकर्षण करने के लिये लाल स्याही से अथवा जैसे लाल पैंसिल फिरा दी जाती है वैसे गेरु यदि से रंग दिया जाता था ।
प्राचीन लेखन वैशिष्ट्यः
ग्रंथ-लेखन में जहां वाक्यार्थ या सम्बन्ध पूर्ण होता था वहां पूर्ण विराम, दोहरा पूर्ण विराम एवं अवांतर विषय अवतरण आदि की परिसमाप्ति पर || छ || लिखा जाता था एवं श्लोकांक भी इसी प्रकार लिखा जाता था । विशिष्ट ग्रन्थों में मूलग्रन्थ के विषय को स्पष्ट करने वाले यन्त्र, चिन्ह, लिखने के साथ-साथ श्लोक संख्या, गाथा संख्या, ग्रथांग्रंथ, प्रशस्ति प्रादि लिखी जाती थी। कुछ अविवेकी लेखक इन्हें न लिखकर ग्रन्थ के महत्व और वैशिष्ट्य को कम कर देते थे !
ताडपत्रीय ग्रन्थों के चित्र व टीके आदि के अतिरिक्त केवल काली स्याही ही व्यवहृत होती थी । जबकि कागज के ग्रन्थों के लेखन में काली के अतिरिक्त सुनहरी, रूपहली और लाल स्याही का प्रयोग छूट से हुआ है । सुनहरी, रूपहली स्याही में समग्र ग्रन्थ लिखे गए हैं, वैसे लाल रंग का प्रयोग पूरे ग्रन्थ में न होकर विशिष्ट स्थान, पुष्पिका, ग्रन्थाग्र, उक्तं च, तथाहि, पूर्ण विराम आदि में हुआ है । पर पत्नों की पृष्ठभमि में लाल, नीला, हरा आदि सभी रंगों से रंग कर उस पर अन्य रंगों का प्रयोग हुआ है ।
पुस्तक लेखन के प्रकार:
पुस्तकों के बाह्य प्रकार को लक्षित करके आगे गंडी, कच्छपी, मुष्टि आदि पुस्तकों के प्रकार बतलाए गए हैं पर जब कागज के ग्रन्थ लिखे जाने लगे तो उनकी लेखन पद्धति व आभ्यन्तरिक स्वरूप में पर्याप्त विविधता आ गई थी । कागज पर लिखे ग्रन्थ, त्रिपाठ, पंचपाठ, टब्बा, बालावबोध शैली, दो विभागी ( कालम), सूड़ ( Running ) लेखन, चित्रपुस्तक, स्वर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी, सूक्ष्माक्षरी, स्थूलाक्षरी, मिश्रिताक्षरी, पौथियाकार, गुटकाकार यदि अनेक विधाओं के संप्राप्त हैं ।
त्रिपाठ या त्रिपाट:
ग्रन्थ के मध्य में बड़े अक्षर व ऊपर नीचे उसके विवेचन में टीका टबा आदि सूक्ष्माक्षरों की पंक्तियां लिखी गई हों वह त्रिपाठ या त्रिपाट ग्रन्थ कहलाता है ।
पंचपाठ या पंचपाट:- जिस ग्रन्थ के बीच में मूलपाठ व चारों ओर के बड़े बोर्ड र हांसिया में विवेचन, टीका, टबादि लिखा हो, अर्थात्, लेखन पांच विभागों में हुआ हो वह पंचपाठ या पंचपाट ग्रन्थ कहलाता है ।
सूड़ या सूढ़ :- जो ग्रन्थ मूल टीका आदि के विभाग बिना सीधा लिखा जाता हो वह सूड़ या सूठ ( Running ) लेखन कहलाता है ।
प्राचीन ग्रन्थ मूल, टीका आदि अलग-अलग लिखे जाते थे तब ताडपत्रीय ग्रन्थों में ऐसे कोई विभाग नहीं थे, जब मूल के साथ टीका, चूर्णि, निर्युक्ति, भाष्य, बालावबोध आदि साथ में लिखे