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बीमाबोल अनइ लक्खारस, कज्जल वज्जल नइ अंबारस ॥ भोजराज मिसी निपाई। पानउ फाटइ मिसी नवि जाई ॥ लाख टांक बीस मेल , स्वाग टांक पांच मेल , नीर टांक दो सौ लेई हांडी में चढ़ाइये। जो लौं प्राग दीजे तो लौं और खार सब लीजे, लोद खार बाल वाल पीस के रखाइये। मीठा तेल दीप जार काजल सोले उतार, नीकी विधि पिछानी के ऐसे ही बनाइये। चाहक चतुर नर लिख के अनुप ग्रन्थ, बांच बांच बांच रिझरिझ मौज पाइये । स्याही पक्की करने की विधि:--लाख चोखी या चीपड़ी पैसा 6, तीन सेर पानी में डालना, सूहागा पैसा 2 डालना, लोद पैसा 3, पानी तीन पाव, फिर काजल पैसा 1 घोट के सुखा देना । फिर शीतल जल में भिगो कर स्याही पक्की कर लेना। काजल 6 टांक, बीजाबोल 12 टांक, खेर का गूद 36 टांक, अफीम आधा टांक, अलता पोथी 3 टांक, फिटकड़ी कच्ची on टांक, नीम
के घोटे से 7 दिन ताम्रपात्र में घोटना । इन सभी प्रकारों में प्रथम प्रकार उपयोगी और सुसाध्य है। कपड़े के टिप्पणक के लिए बीजाबोल से दुगुना गूद, गूंद से दुगुनी काजल मिली स्याही दो प्रहर मर्दन करने से वज्रवत् हो जाती है।
सुन्दर और टिकाऊ पुस्तक लेखन के लिए कागज की श्रेष्ठता जितनी आवश्यक है उतनी ही स्याही की भी है। अन्यथा प्रमाणोपेत विधिवत् न बनी हुई स्याही के पदार्थ रसायनिक विकृति द्वारा कागज को गला देती है, चिपका देती है, जर्जर कर देती है। एक ही प्रति के कई पन्ने अच्छी स्थिति में होते हैं और कुछ पन्ने जर्जरित हो जाते हैं, इसमें लहिया लोगों की अज्ञानता से या प्रादतन गाढ़ी स्याही करने के लिए लोह चर्ण, बीयारस आदि डाल देते हैं जिससे पुस्तक काली पड़ जाती है, विकृत हो जाती है। सुनहरी रूपहली स्याही:
सोना और चांदी की स्याही बनाने के लिए वर्क को खरल में डाल कर धव के गंद के स्वच्छ जल के साथ खब घोटते जाना चाहिए। बारीक चूर्ण हो जाने पर मिश्री का पानी डाल कर खब हिलाना चाहिए। स्वर्ण चूर्ण नीचे बैठ जाने से पानी को धीरे-धीरे निकाल देना चाहिए। तीन चार बार धु लाई पर गूंद निकल जाएगा और सुनहरी या रूपहली स्याही तैयार हो जाएगी। लाल स्याही:
गिल को खरल में मिश्री के पानी के साथ खुब घोट कर ऊपर पाते हुए पीलास लिए हए पानी को निकाल देना। इस तरह दस पन्द्रह बार करने से पीलास निकल कर श.द्ध लाल रंग हो जाएगा। फिर उसे मिश्री और गूंद के पानी के साथ घोट कर एकरस कर लेना। फिर सूखा कर टिकड़ी की हुई स्याही को आवश्यकतानुसार पानी में घोल कर काम में लेना चाहिए। मिश्री के पानी की अपेक्षा नींबू का रस प्रयुक्त करना अधिक उपयोगी है।
प्रष्टगन्ध:
अगर, तगर, गोरोचन, कस्तूरी, रक्त चन्दन, चन्दन, सिंदूर और केशर के मिश्रण से अष्ट