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लिपि की स्वरूप शिका--स्याही या रंग :-पुस्तक लिखने के अनेक प्रकार के रंग या स्याही में काला रंग प्रधान है। सोना, चांदी और लाल स्याही से भी प्रन्थ लिखे जाते हैं पर सोना, चांदी की महयता के कारण उसका प्रयोग अत्यल्प परिमाण में ही विशिष्ट शास्त्र लेखन में श्रीमन्तों द्वारा होता था। लाल रंग का प्रयोग बीच-बीच में प्रकरण समाप्ति व हांसिए की रेखा में तथा चित्रादि अालेखन में सभी रंगों का प्रयोग होता था। एक दूसरे रंग के मिश्रण द्वारा कई रंग तैयार हो जाते हैं। पूर्व काल में ताड़पत्र, कागज आदि पर लेखन हेतु किस प्रकार स्याही बनती थी? इस पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जाता है। ताड़-पत्न काष्ठ की जाति है, जब कि कागज व वस्त्र उससे भिन्न है। अतः प्रकति भिन्नता के कारण तदनकल स्याही की रासायनिक विधि भिन्न होना स्वाभाविक है। आजकल ताड़-पत्र लेखन प्रचलित न होने से उसकी स्याही का स्वरूप प्राचीन उल्लेखों पर आधारित है ।
प्रथम प्रकारः--कांटोसेरिया (धमासा), जल भांगरा का रस, त्रिफला, कसीस, लोहचूर्ण को उकाल कर, क्वाथ बना कर, गली के रस को बराबर परिमाण में मिला कर, काजल व बीजाबोल मिलाने से ताड-पत्न लेखन-योग्य स्याही बनती है। इन्हें तांबे की कढ़ाई में घोट कर एक रस कर लेना चाहिए।
द्वितीय प्रकार:--काजल, पोयण, बीजाबोल, भूमितला, जलभांगरा और पारे को उबलते हुए पानी में मिला कर, तांबे की कढाई में सात दिन तक घोट कर एक रस कर लेना। फिर उसकी बड़ियां बना लेना। उन्हें कट कर रखें। फिर जब आवश्यक हो उन्हें गरम पानी में खूब मसल कर स्याही कर लेना।
तुतीय प्रकार:--कोरे काजल को मिट्टी के कोरे सिकोरे में अंगुली से मसल कर उसकी चिकनाई मिटा देना। थोड़े से गोमत्र में भिगो देने से भी चिकनास मिट जाती है। फिर उसे निब या खैर के गंद के साथ बीमारस में भिगो कर खब घोटना। फिर बड़ी सुखा कर ऊपर की भांति करना ।
चतुर्थ प्रकार:--गूद, नींब के गूद से दुगना बीजाबोल, उससे दुगुना काजल (तिल के तेल से पाड़ा हुआ) को घोट कर गोमूत्र के साथ आंच देना, पात्र ताम्र का होना चाहिए। सूखने पर थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहें व पांच तोला एक दिन परिमाण से घोट कर लोद, साजीखार युक्त लाक्षारस मिलाना। गोमन में धोये भीलामा चूंटा के नीचे लगाना। फिर काले भांगर के रस के साथ मर्दन करने से उत्तम स्याही बनती है। .
पंचम प्रकार:-ब्रह्मदेश, कर्णाटक, उल्कलादि देशों में ताड़पत्र लोहे की सूई से को कर लिखे जाते हैं। उनमें अक्षरों में काला रंग लाने के लिए नारियल की टोपसी या बादा के छिलकों को जला कर, तेल में मिला कर लगा देना। पोंछने से ताड़-पत्न साफ हो जाएगा अक्षरों में कालापन आ जायेगा । कागज और कपड़ों पर लिखने योग्य काली स्याही :
जितना काजल उतना बोल, तेथी दणा गंद झकोल । जो रस भांगरा नो पड़े, तो अक्षरे अक्षरे दीवा बले ॥
काजल से आधा गूंद, गूंद से आधा बीजाबोल, लाक्षारस, बीयारस के स तांबे के भाजन में मर्दन करने से काली स्याही होती है। .