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चित्तौड़ से वि. सं. 1335 का एक शिलालेख मिला है। इसमें भर्तृ पुरीय गच्छीय प्राचार्य प्रद्यम्नसरि के उपदेश से महारावल समरसिंह ने अपनी माता जयतल्लदेवी की इच्छ नुसार श्याम पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया एवं मठ की व्यवस्था के लिए पर्याप्त राशि दान में दी। चित्तौड़, सज्जनपुर, खोहर, पाघाट आदि की मंडपिकानों से होने वाली आय में से पर्याप्त राशि देने का उल्लेख मिलता है ।
बिजोलिया क्षेत्र में दिगम्बर जैनों का अधिक प्रभाव रहा था। वहां से दो प्रसिद्ध लेख मिले हैं। पहला लेख वि. सं. 1226 का है। इसमें चौहानों की विस्तृत वंशावली दी हुई है। यह वंशावली हर्षनाथ के वि. सं. 1030 के शिलालेख और पृथ्वीराज विजय काव्य से मिलती है और प्रामाणिक है। इसी सामग्री से पृथ्वीराज रासो नामक ग्रन्थ को जाली सिद्ध करने में सहायता मिली है। दूसरा लेख "उन्नत शिखर पुराण" का अंश है। इसे मैंने अनेकान्त में संपादित करके प्रकाशित कराया है। चित्तौड़ से परमार राजा नरवर्मा के समय का लेख मिला है। इस लेख के प्रारम्भ में मालवे के परमार राजाओं की वंशावली दी हई है। इसमें चित्तौड़ में स्थापित विधिचैत्य के लिए दान देने की व्यवस्था भी की गई है। चित्तौड़ से ही वि. सं. 1207 की कुमारपाल की शिवमन्दिर की प्रशस्ति मिली है। इसकी रचना दिगम्बर जैन विद्वान रामकीर्ति ने की थी जो जयकीर्ति के शिष्य थे। इस लेख में कुमारपाल के शाकम्भरी जीतने की महत्वपूर्ण सूचना है ।
13वीं शताब्दी में राजस्थान में प्राबू, चित्तौड़, जालौर, गौड़वाड आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निर्माण कार्य हया था। आब में प्रसिद्ध 'लणिग वसही" नामक जैन मन्दिर बना था। इसके वि. सं. 1287 के शिलालेख में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सूचनाएं हैं। इसमें गुजरात के शासकों और आबू के परमारों की विस्तृत वंशावली दी हुई है एवं कई राजाओं का विस्तृत वंशवृक्ष भी दिया हआ है। यह मन्दिर परमार राजा सोमसिंह के समय बना था। इसकी मां श्रृंगारदेवी भी जैन धर्म रो प्रभावित थी। झाडोली के वि. सं. 1255 के जैन मन्दिर के लेख में इसका उल्लेख भी किया हुअा है। वि. सं. 1350 का परमार राजा वीसलदेव का आबू से प्राप्त महत्वपूर्ण लेख है। इस राजा के 4 अन्य जैन लेख वि. सं. 1345 से 1351 तक के भी मिले हैं। प्राब के अन्तिम परमार शासकों के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले ये लेख महत्वपूर्ण हैं। वस्तुतः वि. सं. 1344 के पाटनारायण के लेख के बाद प्राब में परमारों के सम्बन्ध में क्रमबद्ध सूचना नहीं मिलती है। अतएव यह लेख भी महत्वपूर्ण है। नाडोल के चौहानों और जालोर के सोनगरों के सम्बन्ध में सूढ़ा पहाड़ का महत्वपूर्ण शिलालेख मिला है। इस लेख के माध्यम से इनकी विस्तृत वंशावली तैयार की गई है। सोनगरों के बचे हुए राजाओं के नामों की विस्तृत सूची वि. सं. 1378 के देलवाड़ा के विमल वसही के लेख में है।
__अल्लाउद्दीन खिलजी ने प्राब के जैन मन्दिरों को विध्वंस किया था और उनका जीर्णोद्धार वि. सं. 1378 के आसपास मण्डोर के जैन श्रेष्ठि परिवारों ने कराया था। सैणवा (जिला चित्तौड़) और गंगरार (जिला चित्तौड़) से भी वि. सं. 1372 और वि. सं. 1389 तक के कई दिगम्बर जैन लेख मिले हैं। ये लेख प्रायः निषेधिकारों के हैं। इन लेखों से पता लगता है कि अल्लाउद्दीन के आक्रमण के बाद कुछ दिनों में वहां स्थिति में परिवर्तनपा गया था और जैन साधु वापस वहां आकर रहने लग गए थे। जैसलमेर में भी अल्लाउद्दीन का आक्रमण हुआ था। इस आक्रमण के सम्बन्ध में फारसी तवारीखें प्रायः मौन हैं और एक मात्र सूचना वहां के जैन मन्दिरों की प्रशस्तियों से ही मिलती है।
अल्लाउद्दीन के आक्रमण के बाद राजस्थान में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। मेवाड़ के सिसोदियों का उदय एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। इनके राज्य में श्वेताम्बर जैनियों