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________________ 387 के और बिक्री, ब्याज पर पूंजी नियोजन आदि का पूर्ण अधिकार रहता था । वि. सं. 1287 Shahar ही के लेख से पता चलता है कि मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने अपने सभी निकट सम्बन्धियों को पूजा सम्बन्धी विस्तृत अधिकार दिए थे । रत्नपुर के शिलालेख से पता चलता है कि गोष्ठिकों की संस्था को "भाटक" संस्था भी कहते थे । वि. सं. 1235 के सच्चिका देवी के मन्दिर के शिलालेख में "सच्चिकादेवी गोष्ठिकान् भगित्वा तत्समक्षत इयं व्यवस्था लिखापितं " एवं सेवाड़ी के वि. सं. 1192 के लेख में "गोष्ठ्या मिलित्वा निषेधीकृतः' कहकर व्यवस्था की गई है। ऐसे ही वर्णन वि. सं. 1236 के सांडेराव के लेख में है । " मन्दिरों की व्यवस्था के लिए कई दान देने का भी उल्लेख है । इनमें पूजा के अतिरिक्त वार्षिक उत्सव, रथयात्रा आदि के लिए भी व्यवस्था कराने का उल्लेख है । इनके अतिरिक्त कई बार कर लगाने के भी उल्लेख मिलते हैं जिनकी आय सीधी मन्दिर को मिलती थी । इनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है: वि. सं. 1167 के सेवाड़ी के शिलालेख में महाराज प्रश्वराज द्वारा धर्मनाथ देव की पूजा के निमित्त ग्राम पदराडा, मेंदरचा, छोछड़िया और मादड़ी से प्रति रहट जव देने का उल्लेख किया गया है । वि. सं. 1172 के इसी स्थान के लेख में जैन मन्दिर के निमित्त प्रति वर्ष 8 द्रम्म देने का उल्लेख है । वि. सं. 1198 के नाडलाई के लेख में महाराज रायपाल के दो पुत्रों और उसकी पत्नी द्वारा जैन यतियों के लिये प्रति घाणी दो पल्लिका तेल देने की व्यवस्था की सूचना मिलती है । वि. सं. 1187 के संडेरगच्छ के महावीर देशी चैत्य के निमित्त मोरा गाम में प्रति घाणी तेल देने का इसी प्रकार उल्लेख मिलता है । वि. सं. 1195 के लेख में, हिल वंशीय राऊल उद्धरण के पुत्र ठक्कुर राजदेव द्वारा नेमिनाथ की पूजा निमित्त नाडलाई में आने-जाने वाले समस्त भारवाहक वृषभों से होने वाली आय का 1.10 भाग देने का उल्लेख है । वि. सं. 1200 के नाडलाई के लेख में रथ यात्रा के निमित्त उक्त राजदेव द्वारा 1 विशोषक और 2 तेल पल्लिका देने का उल्लेख है । वि. सं. 1200 के बाली शिलालेख में इसी प्रकार रथ यात्रोत्सव के लिए 4 द्रम्म देने की सूचना दी गई है । वि. सं. 1202 के नाडलाई के लेख के अनुसार उक्त राजदेव गुहिलोत द्वारा महावीर चैत्य के साधुओं के लिए दान दिया गया था । वि. सं. 1218 के ताम्रपत्र में संडेरगच्छ के महावीर चैत्य के लिए प्रतिमास 5 द्रम्म दान में देने का उल्लेख किया गया है । वि. सं. 1218 के नाडलाई के ताम्रपत्रों में कीतु चौहान द्वारा 12 ग्रामों में प्रत्येक से 2 द्रम्म महावीर मन्दिर के निमित्त दान में देने का उल्लेख है । वि. सं. 1221 के कल्हण के सांडेराव के लेख से ज्ञात होता है कि चैत्र बदि 13 को होने वाले भगवान् महावीर के कल्याणक महोत्सव के निमित्त राजकीय प्राय में से दान देने का उल्लेख है । इसी प्रकार के उल्लेख दंताणी के वि. सं. 1345, हटंडी के पास स्थित राता महावीर मन्दिर के सं. 1335, 1336 और वि. सं. 1345 के लेखों में है । चाचिगदेव सोनगरा ने मेवाड़ के करेडा मन्दिर के निमित्त नाडोल की मंडपिका से दान दिया इसका उल्लेख उसने वि. सं. 1326 के शिलालेख में किया । यह मन्दिर उसकी राज्य के सीमाओं में नहीं था फिर भी दान देना विचारणीय है । था । जालौर क्षेत्र से भी इस प्रकार के कई लेख मिल चुके हैं। वहां से प्राप्त वि. सं. 1320 के एक शिलालेख के अनुसार नानकीयगच्छ के चन्दन-विहार नामक मन्दिर के निमित्त लक्ष्मीधर श्रेष्ठि ने 100 द्रम्म दान में दिए थे । जिसकी आय में से नियमित रूप से ग्रासोज मास के प्रष्टान्हिक महोत्सव कराए जाने की व्यवस्था कराने का उल्लेख है । वि. सं. 1323 के इसी मन्दिर के लेख के अनुसार महं. नरपति ने 50 द्रम्म दान में दिए थे भाय से मन्दिर के लिए नेचक ( माला) की व्यवस्था कराने का उल्लेख है । जिसके ब्याज की ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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