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________________ 380 बीकानेर के शास्त्र भण्डार : बीकानेर नगर की स्थापना सन 1488 में बीकाजी द्वारा की गई थी। इस नगर का प्रारम्भ से ही राजनैतिक महत्व रहा है। साहित्य की दृष्टि से भी बीकानेर की लोक-प्रियता रही है। अकेले बीकानेर शहर में 1 लाख से भी अधिक ग्रन्थों का संग्रह मिलता है। इनमें से 15 हजार पाण्डुलिपियां तो अनूप संस्कृत लायब्रेरी में हैं और शेष 85 हजार पाण्डलिपियां नगर के जैन शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत हैं। हस्तलिखित ग्रन्थों का इतना भारी भण्डार जयपुर के अतिरिक्त राजस्थान के अन्यत्र किसी नगर में नहीं मिलता। इन भण्डारों में प्राचीन तथा स्वर्ण एवं रजत की स्याही द्वारा लिखे हए ग्रन्थ भी अच्छी संख्या में मिलते हैं। बीकानेर नगर के अतिरिक्त चूरू एवं सरदारशहर में भी शास्त्र भण्डार हैं। बीकानेर में सबसे बड़ा संग्रह अभय जैन ग्रन्थालय, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान एवं बड़े उपासरे में स्थित वृहत ज्ञान भण्डार में है। इनमें दानसागर भण्डार, महिमा-भक्ति भण्डार, वर्द्धमान भण्डार, अभयसिंह भण्डार, जिनहर्षसूरि भण्डार, भुवन भक्ति भण्डार, रामचन्द्र भण्डार और महरचन्द्र भण्डार के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त श्री पूज्य जी का भण्डार, जैन लक्ष्मी मोहन शाला ज्ञान भण्डार, मोतीचन्द जी खजाञ्ची संग्रह, क्षमाकल्याणजी का ज्ञान भण्डार, छती बाई के उपासरे का भण्डार आदि के नाम भी उल्लेखनीय है । इनमें सबसे प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण अभय जैन ग्रन्थालय है जिसमें अकेले में करीब 60 हजार प्रतियां संग्रहीत है। यह संग्रह सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । इस भण्डार की स्थापना करीब 40 वर्ष पूर्व हुई थी। यहां कागज के अतिरिक्त ताडपत्र पर भी ग्रन्थ मिलते हैं। इतिहास से सम्बन्धित ग्रन्थों का भण्डार में उत्तम संग्रह हैं। जैनाचार्यों एवं यतियों द्वारा लिखे हुए सैकड़ों पत्र भी यहां संग्रहीत हैं। भण्डार में पुराने चित्र, सचित्र विज्ञप्तियां, कपड़े के पट्ट, सिक्कों एवं दावात पर लिखे हुए पत्र संग्रहीत हैं। यह भण्डार पूर्णतः व्यवस्थित है तथा सभी ग्रन्थ वर्णक्रमानुसार रखे हुए हैं। इस ग्रन्था लय के प्रबन्धक एवं स्वामी श्री आरचन्द्र नाहटा है जो स्वयं भी महान साहित्य सेवी हैं। उक्त संग्रहों के अतिरिक्त सेठिया पुस्तकालय, गोविन्द पुस्तकालय, पायचन्द गच्छ उपासरा का संग्रह भी उल्लेखनीय है। इन सभी में पाण्डुलिपियों का उत्तम संग्रह मिलता है। नगर में कुछ और भी हस्तलिखित भण्डार हैं । राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान को श्री पूज्य जी का, उ. जयचन्दजी का, उ. समीरमलजी का, मोतीचन्दजी खजांची ग्रादि का 22000प्रतियों का संग्रह भेंट स्वरूप दिया गया है। वास्तव में इन भण्डारों की दष्टि से बीकानेर का अत्यधिक महत्व है और इसे हम पाण्डुलिपियों का नगर ही कह सकते हैं। चरू में यति ऋद्धिकरणजी का शास्त्र भण्डार है जिसमें करीब 3800 पाण्डुलिपियों का संग्रह है। यहां पृथ्वीराज रास, काव्य कौस्तुभ (वैद्य भूषण), अलंकार शेखर (केशव मिश्र) जैसी महत्वपूर्ण प्रतियों का संग्रह मिलता है । इसी तरह सरदारशहर की तेरापन्थी सभा में करीब 1500 प्रतियों का संग्रह है। जिनमें अमरसेन रास, नैषधीय टीका का उत्तम संग्रह है। बीकानेर प्रदेश के अन्य नगरों में शास्त्र भण्डारों की उपलब्धि निम्न प्रकार होती है: 1. यति सुमेर मल संग्रह, भीनासर (रा. प्रा. वि. प्र. को प्रदान) । 2. बहादुरसिंह बांठिया संग्रह, भीनासर । 3. श्वेताम्बर तेरहपंथी पुस्तकालय, गंगाशहर । 4. यति किशनलाल का संग्रह, काल । 5. खरतरगच्छ के यति दुलीचन्द, सुजानगढ़ का शास्त्र भण्डार । 6. सुराना पुस्तकालय, चूरू । 7. श्रीचन्द गदहिया संग्रह, सरदारशहर ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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