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यह प्रदेश प्राचीन काल मे ही जैन साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र रहा। 18वीं शताब्दी से यहां कितने हो साहित्यकार हुए जिन्होंने हिन्दी में काव्य रचना करके अपने पांडित्य का परिचय दिया । इस प्रदेश में मुख्य रूप से भरतपुर, डीग, कामां, कुम्हेर, वैर, बयाना आदि स्थानों में शास्त्र भण्डार मिलते हैं। पंचायती मन्दिर भरतपुर में सबसे बड़ा संग्रह है. जिनकी संख्या 800 से अधिक है।। इसमें वृहद तपागच्छ पट्टावली को प्रति सबसे प्राचीन है जो संवत् 1490 (सन् 1433) की लिखी हुई है। इसी तरह अपभ्रन्श की कृति सप्तव्यसन कथा महत्वपूर्ण कृति है जो इस भण्डार में संग्रहीत है। यह माणिकचन्द्र को रचना है तथा संवत 16 34 इसका रचनाकाल हैं। प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी ग्रन्थों की भी यहां अच्छी संख्या है । भक्तामर स्तोत्र की एक सचित्र प्रति है जिसमे 51 चित्र है तथा जो अत्यधिक कलापूर्ण है। यह पाण्डुलिपि सन् 1769 की है। भरतपुर के ही एक अन्य मन्दिर में हस्तलिखित ग्रन्थों का एक छोटा सा संग्रह और है।
डोग नगर के तीन मन्दिरों में ग्रन्थों का संग्रह है, इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में ग्रन्थों को लिखने-लिखाने के प्रति जनता की काफी अच्छी रुचि थी । सेवाराम पाटनी जो हिन्दी के अच्छे कवि माने जाते हैं, इसी नगर के थे। उनके द्वारा रचित मल्लिनाथ चरित (सन 1793) की मूल पाण्डलिपिन्यी डीग के पंचायती मन्दिर में संग्रह त है। रामचन्द्ररि द्वारा विरचित विक्रमचरित की एक महत्वपूर्ण प्रति भी यहां उपलब्ध होती है। जिन गण विलास (रचना संवत 1822) पुरानी डीग के मन्दिर में संवत् 182 3 को पाण्डुलिपि मिलती है।
भरतपुर से कामां कोई 40 मील दूरी पर स्थित है जो राजस्थान के प्राचीनतम नगरों में गिना जाता है। इस नगर का खण्डेलवाल दिगम्बर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार प्राचीन एवं महत्वपूर्ण पाण्ड लिपियों की दृष्टि से सारे प्रदेश के भण्डारों में उल्लेखनीय है। दौलतराम के पुत्र जोधराज कासलीवाल यहीं के रहने वाले थे। प्रवचनसार एवं पंचास्तिकाय पर प्रसिद्ध हिन्दी विद्वान हेमराज द्वारा संवत् 1719 व 1737 में इसी नगर में पाण्डुलिपियां लिखी गई थीं। इसी तरह देवप्रभसूरि का पांडव चरित्र (संवत् 1454),प्रभाचन्द्र कृत प्रात्मानशासन की टीका (संवत 1548) का शुद्ध पाण्डुलिपियों का संग्रह भी इसी भण्डार में मिलता है। यहां भट्टारक शुभचन्द्र कृत समयसार की टीका की एक पाण्डुलिपि है जो अन्यत्र नहीं मिलती। इस शास्त्र भण्डार में 578 प्रतियों का संग्रह है। नगर के दूसरे अग्रवाल मन्दिर में 105 हस्तलिखित प्रतियों का संग्रह मिलता है।
बयाना भी राजस्थान का प्राचीन नगर है एवं भरतपुर जिले के प्रमुख नगरों में से है। दो दशक पूर्व ही वहां गप्त काल के सिक्के मिले थे जिनके आधार पर इस नगर की प्राचीनता सिद्ध होती है। यहां पंचायती मन्दिर एवं तेरहपंथी मन्दिर दोनों में ही शास्त्र भण्डार है। दोनों ही मन्दिरों में 150-150 से भी अधिक पाण्डुलिपियों का संग्रह है। वैर, जो बयाना से 15 मील पूर्व की पार है वहां भी एक दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में 120 हस्तलिखित प्रतियों का संग्रह मिलता है।
श्री महावीरजी राजस्थान का सर्वाधिक लोकप्रिय दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है। गत 300 वर्षों से यह क्षेत्र जैन साहित्य संस्कृति का केन्द्र रहा है और यहां पर दिगम्बर भट्टारकों की गादी भी है । इस गादी के भट्टारक चन्द्रकीर्ति का अभी कुछ ही वर्ष पहिले स्वर्गवास हुआ था। यहां के शास्त्र भण्डार में 400 से अधिक प्रतियां हैं जिनमें प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं हिन्दी ग्रन्थों का अच्छा संग्रह है। इन ग्रन्थों की सूची राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची (प्रथम भाग) में प्रकाशित हो चुकी है। प्राचीन पाण्डुलिपियों का यहां अच्छा संग्रह है जिनके आधार पर इतिहास के कितने ही नवीन तथ्यों की जानकारी मिलती है।
1. विस्तृत सूची राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची पंचम भाग में देखिये।