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भाग-1, कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई है जिनमें 3710 हस्तलिखित ग्रन्थों प्रतियों का परिचय दिया गया है। अभी भंडार में विशाल संग्रह है जिसके सूचीकरण का कार्य हो रहा है और इस प्रकार की
और भी दस ग्रंथ सूचियां प्रकाशित की जा सकती हैं। उक्त भण्डार के अतिरिक्त और भी खरतरगछ ज्ञान भण्डारादि, श्वेताम्बर जैन मन्दिरों, उपासरों में ग्रन्थों का संग्रह है। अभी कछ समय पूर्व स्व. मुनि श्री कान्तिसागर जी का संग्रह यहां आया है जिसका अभी तक पूरा सूचीकरण नहीं हो सका है। भट्टारकीय शास्त्र भण्डार, अजमेर :
अजमेर राजस्थान के प्राचीननतम नगरों में से है। इसका पूराना नाम अजय-मेर दर्ग था। इसको स्थापना सादलक्ष के राजा अजयपाल चौहान ने छठी शताब्दी में की थी। जैसलमेर के शास्त्र भण्डार में एक संवत् 1212 को प्रशस्ति है जिसमें इस नगर को अजयमेरु दूर्ग लिखा हया है। यह नगर भी प्रारम्भ से ही देश को राजनैतिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा। जैन धर्म एवं साहित्य तथा संस्कृति के प्रचार प्रसार में इस नगर का महत्वपूर्ण योगदान रहा। एक पट्टावली के अनुसार सर्वप्रथम संवत् 1168 में भटटारक विशाल कीति ने इस नगर में भट्टारक गादी की स्थापना की थी। इससे पता चलता है कि इसके पूर्व यहां जैन साहित्य एवं संस्कृति को पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हो चुको थी। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में इस नगर में लिपिबद्ध की गयी अनेकों पाण्डुलिपियां उपलव्य होती है।
यहां का भट्टारकीय शास्त्र भण्डार राजस्थान के प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण शास्त्र भण्डारों में से है। बड़े धड़े के मन्दिर में स्थापित होने के कारण इसे दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ा धड़ा का शास्त्र भण्डार भी कहा जाता है। यह मन्दिर एक दीर्घकाल तक भट्टारकों का केन्द्र रहा। संवत् 1770(1713) में यहां पुनः विधिवत भट्टारक गादी को स्थापना की गई, जिसका वर्णन कविवर बखतराम साह ने अपने बुद्धिविलास में किया है । भट्टारक विजय-कीति तक यह भण्डार साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बना रहा क्योंकि भट्टारक विजय-कीर्ति स्वयं विद्वान ही नही कितने ही ग्रन्थों के रचयिता भी थे। स्वयं लेखक ने दिसम्बर 1958 में 2015 ग्रन्थों का सूची-पत्र बनाया तथा उन्हें पूर्ण व्यवस्थित करके रखा था।
भण्डार में महापण्डित पाशाधर (13 वीं शताब्दी) के अध्यात्म-रहस्य को एक मात्र पाण्डलिपि संग्रहीत है इसे खोज निकालने का श्रेय स्व. श्री जगलकिशोर जी मखतार को है। इसी तरह जीतसार समुच्चय (वृषभनन्दि), समाधिमरण महोत्सव दीपिका (भट्टारक मकलकीर्ति), चित्र बन्धन स्तोत्र (मेधावो) जैसी संस्कृत कृतियों के नाम उल्लेखनीय हैं। भण्डार में प्राकृत भाषा की प्रसिद्ध कृति गोमट्टसार पर एक प्राकृत भाषा की टीका उपलब्ध हुई है। तेजपाल का पासणाह चरित (अपभ्रंश) की पाण्डुलिपि भी इसी भण्डार में सुरक्षित है।
इसी तरह कुछ अन्य महत्वपूर्ण एवं प्राचीन पाण्ड लिपियों में प्रभाचन्द्र की प्रात्मानशासन टोका (संवत् 1580), मल्लिषेण का नागकुमार चरित (संवत 16751वीरलान्द का चन्द्रप्रभकाव्य (संवत् 1678), सकलकोति का प्रश्नोत्तर श्रावकाचार (संवत् 1553), अमितगति की धर्मपरीक्षा (संवत् 1537) आदि भी उल्लेखनीय प्रतियां है। भरतपुर प्रदेश (राजस्थान) के शास्त्र भण्डारः
भरतपर प्रदेश ही पहिले भरतपुर राज्य कहलाता था। इस प्रदेश की भमि व्रज भमि कालाती है तथा डीग, कामां ग्रादि नगर राजस्थान में होने पर भी त्रज प्रदेश में गिने जाते हैं।
राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची पंचम भाग में-इस भण्डार की विस्तृत सूची प्रकाशित हो चकी है।