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________________ 366 प्राचार्य श्री हस्तीमल जी, जैन कथामाला भाग 1 से 12-श्री मधुकर मुनि, जैन कहानियों भाग-1 से 25,-मुनि श्री महेन्द्र कुमार जी 'प्रथम', प्रताप कथा कामदी भाग-1 से 5-श्री रमेश मनि,सौन्दर्य दर्शन-श्री शान्ति चन्द्र मेहता, कथा कल्पतरु-मुनि श्री छत्रमल, लो कहानी सुनो, लो कथा कहदू-श्री भगवती मनि 'निर्मल', श्री देवेन्द्र मनि के संकलन-खिलती कलियां: मरकराते फल, प्रतिध्वनि, श्री गणेश मनि शास्त्री के संकलन-प्रेरणा के बिन्द्र. श्री विजय मुनि शास्त्री का 'पीयूष घट तथा' श्री केसरीचन्द्र सेठिया का संग्रह 'मुक्ति के पथ पर' आदि । उक्त कहानी व लघुकथा संकलनों को देखकर हमें हिन्दी जैन कथा साहित्य की निम्न तीन प्रवृत्तियां परिलक्षित होती हैं। (क) जैनागमों, पुराणों तथा अन्य धार्मिक साहित्य में उपलब्ध कथासूत्रों को प्राधार रूप में लेकर अपने वर्णन कौशल व कल्पना से उसे ग्रा न्दी कहानी के साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करना। (ख) धार्मिक साहित्य में उपलब्ध कथा-कहानियों को ज्यों की त्यों हिन्दी में प्रस्तुत करना। (ग) जैन जैन धार्मिक तथा इतर ग्रन्थों में उपलब्ध प्रेरणात्मक चरित्र-निर्माण सम्बन्धी व जीवनोपयोगी प्रसंगों को अपनी टिप्पणियों के साथ सुन्दर साहित्यक भाषा में प्रस्तुत करना। उक्त तीन प्रवत्तियों के आधार पर जैन कहानी साहित्य तीन रूपों में उपलब्ध है (क) साहित्यिक कहानियां-यथा डा. नरेन्द्र भानावत के संकलन 'छ मणियां कुछ पत्थर' तथा प्रस्तुत लेखक के संकलन 'बदलते क्षण में उपलब्ध । (ख) धार्मिक कहानियां -यथा 'मुक्ति के पथ पर' (केसरी चन्द सेठिया) 'जैन कथामाला'(मधुकर मुनि) आदि। (ग) प्रेरक-प्रसंग वर्णन, यथा प्रतिध्वनि (देवेन्द्र मुनि शास्त्री) प्रेरणा के बिन्दु (गणेश मनि शास्त्री) आदि में संकलित है। तीनों शैलियों में उपलब्ध समग्र जैन कहानी साहित्य का एक समान उद्देश्य है-मानव जीवन का उत्थान, चरित्र का निर्माण। इसलिए भेद शैलीमाव का है, बाहय है, अन्तर सबका एक है, भाव भूमि समान है। नाटक-एकांकी यह विधा जैन साहित्यकारों से जैसे अछूती ही रही है। कहने मात्र को एक एकांकी संकलन 'विष से अमृत की ओर' डा. नरेन्द्र भानावत का है, जिसमें नौ एकांकी संकलित हैं। विष से अमृत की ओर, शराणागत की रक्षा, प्रात्मा का पर्व, एटम अहिंसा और शान्ति, इन्सान की पूजा का दिन, सच्चा यज्ञ, अनाथी मनि, तीर्थकर, नमिराज और इन्द्र । इनमें तीन एकांकी-प्रात्मा का पर्व, एटम अहिंसा और शान्ति तथा इन्सान की पूजा का दिन प्रागम सम्मत विचारधारा पर आधारित काल्पनिक एकांकी है, शेष रह एकांकी प्रसिद्ध जैन कथानकों पर आधारित है। सभी एकांकियों में जैन सांस्कृतिक परम्परा और जैन दर्शन की प्रात्मा का सफल प्रस्तुतिकरण है। डा. रामचरण महेन्द्र के शब्दो में-“लेखक ने इन एकांकियों के माध्यम से कर्ममूलक संस्कृति की प्रतिष्ठा, पुरुषार्थवाद की मान्यता और कर्तव्य की भावना को जाग्रत करने का प्रयत्न किया है। यद्यपि इन एकांकियों की कथावस्तु और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जैन कथाओं से सम्बन्धित है-तथापि भानावत जी देश की प्राधनिक मामाजिक, सांस्कृतिक एवं
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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