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________________ 367 राजनैतिक परिस्थितियों से भी अपना मुख नहीं मोड़ सके हैं । उनमें से झलकी हैं ।" 1 - संकलन के प्राक्कथन पृ. 7-8 से सम्पूर्ण नाटक की दृष्टि से श्री महेन्द्र जैन का 'महासती चन्दनबाला' नाटक अभी प्रकाश ाया है। यह तीन अंकों में समाप्त सुन्दर, प्रभावोत्पादक नाटक है जिसको जयपुर व दिल्ली में सफलतापूर्वक रंगमंच पर खेला जा चुका है और सराहा गया है । भगवान महावीर के साध्वी संघ की प्रमुख चन्दनबाला का कथानक अत्यन्त कारुणिक है जो मानव मन की गहराई में सुषुप्त कोमल व मानवीय अनुभूतियों की जाग्रति में परम सहायक है | रंगमंचीय नाट्य - रचना की दृष्टि से लेखक ने इस प्रसिद्ध कथानक का सहज निर्वाह किया है, दृश्य परिवर्तन यथासंभव कम हैं तथा पात्र संख्या सीमित है । चन्दनबाला और साथ ही रानी धारिणी का चरितांकन प्रत्यन्त गरिमामय ढंग से हो सका है जो नारी की चारित्रिक दृढता, आत्म संयम, कष्ट सहिष्णुता, धैर्यशीलता और कोमल मानवीय भावनाओं का सुन्दर निदर्शन है । जैन दर्शन के कर्मवाद की पुष्टि इस प्रसिद्ध कथानक से होती है । लेखक ने भी चन्दनबाला के मुख से इसका समर्थन स्थान-स्थान पर कराया है, यथा-काल कोठरी से मुक्ति मिली पर भाग्य के खेल का अन्त कहां ? स्थितियां बदली हैं, बदलती चली गई, मानव अपनी सत्ता सम्पन्नता और सुन्दरता पर इतराता है, वह भूल जाता है- कर्मों में भी अपना विधान है, इसके आगे किसी की नहीं चलती ।. कर्मों ने मुझे कहां नहीं छला, देव ! आज वे फिर छल रहे हैं ।" अस्तु, , जैन साहित्य में अधुनातम नाट्य विधा की दृष्टि से कोई रचना नहीं थी, यह कृति उस प्रभाव की पूर्ति है । देश की वर्तमान परिस्थितियां उद्धृत ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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