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________________ 364 प्रागमिक व पौराणिक साहित्य में बिखरी कथानों को हिन्दी गद्य में स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत किया जाने लगा। आज स्थिति यह है कि जैन कथाएं विविध साहित्यिक विधानों के स्वरूप में मण्डित होकर समकालीन हिन्दी साहित्य कृतियों के समानान्तर लिखी जा रही है। उपन्यास, लघु उपन्यास, कहानी, लघ कथाएं, नाटक-एकांकी प्रादि विधाओं में प्राज जैन कथा साहित्य उपलब्ध है । राजस्थान का जैन कथा साहित्य : जैन साहित्य के उन्नयन में राजस्थान का सदा ही अग्रणी स्थान रहा है। इस तथ्य का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इस प्रदेश में लगभग तीन हजार ग्रन्थागार हैं जिनमें लगभग तीन लाख पाण्डुलिपियां एकत्रित हैं। यह अधिकांश साहित्य अप्रकाशित है क्योंकि इस युग में साहित्य प्रकाशन की आज की जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। आज का जैन साहित्यलेखन' इस दृष्टि से भाग्यवान है कि उसका अधिकांश भाग प्रकाशित है , प्रकाशित होता रहता है। अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं ने साहित्य-प्रकाशन की स्थिति को अधिक सुविधाजनक बना दिया है। पुनः साधु-साध्वियों के प्रभाव व जैन धनिकों की उदार सहायता के कारण भी आधुनिक जैन साहित्य के प्रकाशन का क्षेत्र उज्ज्वल रहा है। हिन्दी जैन साहित्य की अधनातन प्रवत्तियों में निबन्ध, समालोचना, शोध-प्रबन्ध तथा प्रवचन-साहित्य का प्रणयन व प्रकाशन अधिक हुआ है, अपेक्षाकृत विविध विधापरक स्वतन्त्र कथा साहित्य का प्रणयन व प्रकाशन स्वल्प है। यहां हम राजस्थान के उपलब्ध जैन कथा साहित्य का विधापरक व प्रवत्तिमूलक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहे हैं। इस अध्ययन से प्राधनिक जैन कथा साहित्य लेखन की विशिष्टिता तथा दिशा का प्रकटीकरण हो सकेगा, ऐसा विश्वास है । उपन्यास-लघु उपन्यास : -कमला जैन 'जीजी', प्रकाशित उपन्यासों की संख्या बहुत सीमित ही है। जिन उपन्यासों की जानकारी मिल सकी है. व हैं. चितेरों के महावीर--डा. प्रेम समन जैन, अग्निपथ--कमला जैन 'ज कपिल--प्राचार्य अमृत कुमार, तरंगवती, शली और सिंहासन, भटकते भटकते--- तीनों कृतियों के लेखक हैं ज्ञान भारिल्ल। लघु उपन्यासों में प्रस्तुत लेखक के दो उपन्यास 'जिनवाणी' (मासिक पत्रिका जयपुर) में धारावाहिक प्रकाशित हुए हैं, वे हैं आत्मजयी और कणिकः । ___ 'चितेरों के महावीर' उपन्यास में महावीर के परम्परा से मान्य जीवन प्रसंगों को नवीन शैली में प्रस्तुत किया गया है। मध्यप्रदेश में विदिशा के पास अवस्थित उदयगिरि की गुफाओं को पृष्ठभूमि के रूप में लेकर और आचार्य कश्यप तथा उनके कलाकार शिष्यों की कल्पना कर लेखक ने उपन्यास में धाराप्रवाहिकता, रोचकता व महावीर सिद्धान्तों के प्रस्तुतिकरण में सहजता का समावेश किया है। उपन्यास की यह नवीन शैली एक उपलब्धि है। 'कपिल' नामक उपन्यास में लेखक प्राचार्य अमतकुमार ने 'उत्तराध्ययन सूत्र' के आठवें अध्ययन में उपलब्ध कथासूत्र को आधुनिक उपन्यास की शैली में प्रस्तुत कर, सार्वजनिक बना दिया है। उपन्यास का कथानक सार्वकालिक और सार्वभौमिक है। शकुनीदत्त के चरित्र द्वारा मनुष्य का स्वार्थ और उसकी प्रेरणा से किए जाने वाले मानवीय दुष्कर्म प्रकट हो च के हैं, वही व्यक्ति की अपराध प्रवृत्ति का मनोवैज्ञानिक स्वरूप रपष्ट हो सका है । कपिल' के पात्र हमारे ही समय के, हमारे गली-महल्ले केही पात्र है और इसमें उठाई गई समस्या भी पूर्णत: मानवीय है, अत: सबकी है। प्रानिक जैन साहित्यकार प्राचीन कथासूत्रों को किस सफलता से आधुनिकता
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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