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________________ जैन कथा साहित्य की प्रवृत्तियां - 9 धर्म और कथाएं : कथाएं जन-मानस के लिए सदा ही प्रिय और प्रह्लादकारी रही हैं । धर्म-प्रवर्तकों, धर्माचार्यों तथा प्रचारकों ने मानव-मन के इस मूलभूत मनोविज्ञान को बड़ी सावधानी से पहचाना और धार्मिक भावना के प्रचार में इसका भरपूर उपयोग किया । यही कारण है कि संसार के धार्मिक साहित्य का अधिकांश कथा-कहानियों में है । कथाओं के द्वारा धार्मिक सिद्धान्तों को जन-मन के लिए सुगमतापूर्वक ग्राह्य बनाया जा सका । इस तरह धर्म लोकप्रिय बन सका, परलोक सुधार के साथ-साथ लोकरंजन का भी साधन बन सका । बड़ी ही रोचक और प्रेरणास्पद कथा-कहानियों का अक्षय भण्डार विविध धर्मों में उपलब्ध है । जैन कथा साहित्य : साहित्य का उत्स धर्म रहा है । धार्मिक कथायें साहित्य का मूलाधार रही हैं । तदनुसार जैन साहित्य भी मूलतः धामिकता परक है । ग्रनेकानेक कथाओं, उपकथाओं, प्रसंगों आदि के द्वारा जैन दार्शनिक सिद्धान्तों, जैन आचार तथा विचार को लोकमानस के लिए सुलभ कराया गया ताकि जन-सन अधिकाधिक धर्म के प्रति आकृष्ट हो सके । यही कारण है कि जैन परम्परा का कथात्मक साहित्य विशाल परिमाण में उपलब्ध है । -श्री महावीर कोटया इस समग्र जैन साहित्य को चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है -- ( 1 ) चरणकरणानुयोग, ( 2 ) धर्मकथानुयोग, ( 3 ) द्रव्यानुयाग एवं ( 4 ) गणितानुयोग | विभाजन में धर्मकथानुयोग का एक स्वतन्त्र वर्ग रखा जान, जैन साहित्य में कथाओं के माहात्म्य का प्रमाण है । वस्तुतः कथाओं के माध्यम से उपदेश, ज्ञान प्रतिबोध देने की जैन परम्परा की प्राचीनतम शैली है। प्राप्त ग्रागम ग्रन्थों, जिनमें भगवान महावीर की वाणी का संकलन है, में ही हजारों कथाएं तथा प्रसंग संकलित हैं । ज्ञाताधर्म कथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, ग्रनुत्तरोपपातिकदशा, विपाकश्रुत, निरयावलिका, कप्पवडंसिया, पुफिया, पुष्पचलिका, वह्निदशा, यदि आगम ग्रन्थ इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं । प्राचीन जैन साहित्यकारों में आचार्य भद्रबाहु, जिनदास गणि व संघदास गणि, विमलसूरि, अभयदेव, शीलांक. आचार्य जिनसेन, आचार्य गुणभद्र, प्राचार्य हरिभद्र, प्राचार्य हेमचन्द्र प्रभृति ने अनेक जैन कथाओं को साहित्यिक रूप देकर सदा-सर्वदा के लिए सुरक्षित व अमर बना दिया है। इन द्वारा प्रणीत चरित ग्रन्थों, पुराणों तथा शाधुनिक भारतीय भाषाओं विशेष कर राजस्थानी व गुजराती के अनेक साहित्यकारों ने अपने रास ग्रन्थों, फागु, चर्चरी, वेलि संज्ञक कृतियों में जैन कथाओंों को सुन्दर साहित्यिक रूप में प्रस्तुत कर जैन साहित्य की महान् सेवा की है। हिन्दी में जैन कथा सहित्य : हिन्दी के प्रारम्भिक जैन के रूप में प्रणीत हुए। ग्रनकरण कथा ग्रन्थ संस्कृत पुराणों व चरितादि ग्रन्थों के अनुवादपरन्तु यह प्रवृत्ति प्रारम्भिक ही रही । कालान्तर में जैन
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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